सूखा दरख़्त और आधा चाँद
सूखा दरख़्त और आधा चाँद
चेहरे की झुर्रियों में आधा छिपता
आधा दिखता चाँद
बिस्तर की सलवटों में
क्यूँ सिसकता चाँद
गगन तन्हा,ज़मीं तन्हा
खामोश लब हैं,आँखों की नमी तन्हा
कुछ जुगनू आधी रात में
घूमते हैं इधर उधर
ऐ चाँद..
तुम न जाने खो गए किधर
दरख़्त की सूनी डालियाँ
तुम्हारा बसर नहीं
नज़र आता तन्हाइयों में
कोई रहगुज़र नहीं
सूखकर आधा हो गए हो
किसे सोच रहे हो बेखुदी में चाँद
सितारों की महफ़िल सूनी पड़ी
टूट रही अहसासों की हर कड़ी
ये दरख़्त का सूखा बदन
उज़ड़ गया मन का चमन
ज़मीं से लेकर फलक तक
क्यूँ दिख रहे तुम
उदास चाँद।