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Ruchi Mittal

Tragedy

4.4  

Ruchi Mittal

Tragedy

पत्थर की मूरत

पत्थर की मूरत

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क्रूर काल के हाथों ने जब,

छीना माँ का साया।

एक नन्हा शिशु समझ न पाया,

निर्दयी काल की माया।


माँ के दूध की खातिर,

कितना तड़पा और अकुलाया।

पास खड़े एक बुत को उसने,

माँ के जैसा पाया।


निर्वस्त्र खड़ी नारी देह की,

वो पत्थर की मूरत थी।

पर उस नन्ही जान हेतु, 

वो ममता की सूरत थी।


क्षुब्ध क्षुधा से होकर उस ने,

बुत का स्तनपान किया।

एक पत्थर की मूरत को

माँ जैसा सम्मान दिया।


वात्सल्य देख उस नन्हे शिशु का

पत्थर की आँखे भर आईं

आलिंगन में भरने को  

 बुत की भी बाहें अकुलाई।



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