वीरांगना लक्ष्मीबाई
वीरांगना लक्ष्मीबाई
कटि बांध मनु ने सुत अपना
शत्रु पर धावा बोल दिया
प्यासी उसकी तलवार ने भी
अपना प्यासा मुख खोल दिया
जब झांसी की तलवार उठी
रण चंडी रण में जाग उठी
नर मुंड कटे सौ झुंड कटे
ये देख समर मही कांप उठी
बुंदेलों की नस नस फड़की
उर में ऐसी ज्वाला भड़की
तब खड्ग से रानी झांसी की
कड़ कड़ कड़ बिजली कड़की
शत्रु का शोणित पीने को ले
पवन, पवन के वेग उड़ी
बन कर दावानल इधर बढ़ी
बन कर मृत्यु फिर उधर चढ़ी
जब तक थी सांस लड़ी रानी
शत्रु पर घातक वार किया
जब शक्ति उसकी क्षीण हुई
उसने स्वयं का संहार किया।