STORYMIRROR

Ruchi Mittal

Romance

4  

Ruchi Mittal

Romance

दीप प्रेम का

दीप प्रेम का

1 min
291

उनको मसि बना कर पलको में बंद कर लूँ 

उर की तमाम बतियाँ मैं पी के संग कर लूँ

बाहों में उनकी मचलूँ जैसे जलज मछुरिया 

अंधरों पे फिर अंगारे उनके अधर के धर लूँ


पिघलूँ मैं जैसे पर्वत की हिम पिघल रही हो

लहके बदन कि जैसे डाली लचक रही हो 

आँचल सरक सरक के कांधे से ढलता जाए 

महके ये अंग जैसे जूही महक रही हो


उनमें समा के जग के बंधन मैं तोड़ डालूँ

जन्मों जन्म का उनसे सम्बन्ध जोड़ डालूँ

बन कर मैं निर्झरा सी उदधि में फिर समाऊँ 

जो रोकती हैं मुझको कड़ियाँ वो तोड़ आऊँ


आवेग अब मिलन का कैसे भला रुकेगा

झंझा ये भावना का उत्कर्ष तक उठेगा 

ये भाव जो उदित है हम उसमे डूब जाए

ये दीप प्रेम का अब मृत्यु तलक़ जलेगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance