STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Fantasy

4  

Surendra kumar singh

Fantasy

ख्वाब आते हैं

ख्वाब आते हैं

1 min
266

ख्वाब आते हैं यहॉं और बिकते हैं अभी

हमने हालात की बाजार बना डाला है।


बुत जो बोले तो वो सुना मैंने

बुत की मानिंद ही जिया हमने

यूँ तो हंसते हैं,गुनगुनाते हैं

कुछ सुझावो वो मान जाते हैं

जाने क्या थे,और क्या होंगे अभी

हमने पूजा को भी औजार बना डाला है।


एक दिन रात को सूरज निकला

मौजे लहरों में मेरा घर निकला

हम तो खुश हैं,तेरी खुशामद में

जलती आंखों में,जलते सावन में

जाने क्या हैं,जाने क्या होंगे अभी

हमने उजियार को अंधियार बना डाला है।


बेबसी फिक्र की धुआं सी है

गुमां है कि ये आदमी की बस्ती है

कांपता है वो आग में कबसे

कैसा मंजर है कैसी मस्ती है

जाने क्यों चुप है और रहेंगे अभी

हमने एहसास को ब्यापार बना डाला है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy