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Bhawna Kukreti

Abstract Romance Fantasy

4.8  

Bhawna Kukreti

Abstract Romance Fantasy

इंतज़ार

इंतज़ार

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वो अक्सर,
अपनी खिड़की से रात का,
इंतज़ार देखती है।

हर दिन,
तय हो जैसे समय,
मुलाकात का चार पहर ,
किसी के साथ,
किसी जन्म से । 

अपना झिलमिलाता,
आँचल,
फैलाये रात,
अपने माथे पर चांद सजाती है,
जाने किस,
दीदावर का इन्तज़ार करती है।

इधर
अंधेरे कमरे में
रात को ताकते,
उसके मुहँ पर पड़ती,
छनती चांदनी
उसकी आँखों में उतार देती है,
कुछ कुछ मिलती जुलती,
भीगी सी उसकी,
आधी अधूरी कहानी,
सिर्फ और सिर्फ
इंतजार की।

फिर,
अचानक,
किसी सूरत,
बर्दाश्त नहीं होता,
उसे अपने,
दिल का अंधियारा।

एक दिन,
वह तुनक कर,
रात के माथे से चाँद,
उतार कर छिपा लेती है,
अपने दिल मे।

लिखती  रहती है
चाँद की चांदनी से,
सूने दिल की दीवारों पर,
चन्द यादों के हर्फ़
किसी के इंतजार में।

मूंद कर अपनी,
भीगी भारी पलकें,
देती है सज़ा रात को इंतज़ार,
का चलन चलाने की,
बना देती है कुछ दिन,
अमावस के।

रात कुछ नहीं कहती,
खामोश रहती है,
वह समझती है सब कुछ,
जानती है वो लौटा देगी,
उसके माथे का चांद,
फिर से।

इंतज़ार के खत्म होने का,
इंतज़ार दोनो को है।



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