विजय का त्योहार
विजय का त्योहार
श्रीराम का हर स्वप्न अब साकार करना है।
सुख, शान्ति और समृद्धि का संचार करना है।।
जिस रोग ने बरसों से जकड़ रखा है जग को
उस रोग का जड़ से ही अब उपचार करना है।
है भावना कलुषित जहां कुविचार है मन में
उस मन को पावन, निष्कपट, सुविचार करना है।
धरती दबी जाती कपट और पाप बोझ से
अब अंत कर दुष्टों का जगत उद्धार करना है।
मद, दंभ के कारण धरा न नष्ट हो जाए
दशानन का अहं अब राम बन संहार करना है।
है बढ़ रहा अन्याय, व्यापित हो रहा है भय
अब इस धरा से खत्म दुःख का भार करना है।
सत् आचरण भूले हैं और पुरुषार्थ घट गया
कल्याण हित मानव के दृढ़ आधार करना है।
मर्यादा पुरुषोत्तम सदा जिस राह पर चले
प्रण लें कि मर्यादित वही व्यवहार करना है।
खल दल अधम का काटकर मस्तक "पिनाकी"
पूरे जगत में विजय का त्यौहार करना है।