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PRABODH MISHRA

Classics Fantasy Inspirational

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PRABODH MISHRA

Classics Fantasy Inspirational

दीपों का त्योहार (दोहे )

दीपों का त्योहार (दोहे )

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1.

लंका पर पाकर विजय, लौटे जब प्रभु राम।

घर घर रोशन दीप से, दॄश्य खुशी पैगाम।

2.

किया सभी वो राम ने, जो करवाना चाह।

रखा प्रथम आदर्श खुद, लोक दिखाई राह।

3.

एक तीर दो लक्ष्य थे, सतत राम की नीत।

लोक लोक में इसलिए, हुई राम से प्रीत।

4.

संकट समय विवेक का,अगर रखें हम ध्यान।

तब ही इस संसार के, पूरित हों अरमान।

5.

ज्योति पुंज से दीप के,हों शुभ धवल विचार।

सौख्य,शांति सह साथ से, हँसता घर परिवार।

6.

घर आँगन रोशन सजे,रोशन मन के द्वार।

रोशन दिल की बस्तियाँ, नेह,प्यार विस्तार।

7.

दीप पटाखे रोशनी, अरु मीठे पकवान।

इक दूजे को भेंट दें, गले मिले इंसान।

8.

सृजन करें संस्कार का, हो विकार विसर्जन।

दीप जलाएँ इस निमित, खुशियाँ करें नर्तन।

9.

दीप दीप की ज्योति से, जीवन में उजियार।

भला भला हो सब तरफ, भरे जगत में प्यार।

10.

उजियारा हो दीप सा, तम मन का हर जाय।

राग द्वेष के तिमिर का, अंश न जग रह पाय।

11.

दीप दीप से जब सजे, गाँव शहर की गैल।

तभी उजियार हो सही, हटे हृदय का मैल।

12.

गोवर्धन को थामना, सहज नहीं था काम।

हिम्मत अरु सहयोग से,निकला शुभ परिणाम।

13.

फैलाने को रोशनी, दो तरकीबें खास।

एक स्वयं दीपक बनें, या प्रतिबिम्ब उजास।

14.

भीतर की अमावस को, कौन करेगा दूर।

जग हित रूपी दीप से, पूनम होय जरूर।


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