आज की शिक्षा की दौड़
आज की शिक्षा की दौड़
क्या है जाना हमने यह किसने समझा है,
क्या है जानना यह किसने जाना है,
जाना तो बस यह है कि
हमने सब कुछ किया है।
जाना तो यह है कि हमने सब कराया है।
क्या यह ही आज के शिक्षा समाज की मोहमाया है,
आज के शिक्षा विभाग ने क्या यह ही राह दिखाया है।
तिरस्कार है उन पर जो सोचते हैं कि दौड़ो,
बस दौड़ें और दौड़ते ही रहो।
ना रुको न थमो बस जीवन में भागते रहो,
पर किसी ने सोचा है कि यह दौड़ कहीं पतन की तो नहीं।
या फिर यही सोच रखी है कि दौड़ो,
चाहे कुछ भी हो जाए बस दौड़ो।
चाहे समझ आये न आये,
चाहे दिमाग में घुसे न घुसे बस दौड़ते ही रहो।
और तब तक दौड़ों जब तक तुम ऐसी मंज़िल,
पर न पहुँच जाओ जहाँ तुम कुछ कमा पाओ।
पर क्या यह कमाई तुम्हारी क्षमता
और कला की है या जो तुमने दौड़ के
अपने नाम के साथ शिक्षा का
जो चिन्ह लगवाया है उसकी है।
तूने न कुछ सीखा ना कुछ जाना,
पर तो दौड़ा और दौड़ा
और दौड़ता ही रहेगा और एक दिन आएगा,
जब आत्मा शरीर से निकल के,
उस खुदा के घर दौड़ जाएगी।
तब न कोई तुम्हें याद रखेगा न तुम्हारी दौड़ को
और न तुम्हारे प्रदर्शन को,
जो तुमने दौड़ में दिखाया था।
ये दुनिया एक ऐसी मुख़्तलिफ़ मृगतृष्णा है,
जिसमें किसी भी चीज या व्यक्ति को,
जल्दी ही भूल जाने का कीड़ा पनपा है।
पर तुम करो कुछ ऐसा कि दुनिया,
चाह कर भी तुम्हें भूल ना पाए।