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पिता की दी सीख

पिता की दी सीख

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कुछ क्षण रह गए हैं

मेरी जिंदगी के

जिनको मुझे है निभाना।


बेटा तू मेरी एक बात सुन के जाना

मेरी मौत पर अपनी आँखों में

आँसू कभी न लाना।


शरीर जब मृत मेरा हो जाए

मेरे अंगों को जलाकर

राख मत बनाना।


इनको किसी जरूरतमंद के

काम में है लगाना।


जब जान थी इन अंगों में

तब इनके पास

दूसरों की मदद न करने का

था एक से एक बहाना।


इन अंगों का हमेशा

मकसद रहा ढेर

सारा पैसा कमाना।


पर बेटा, मैं नहीं समझ पाया कि

इस पैसे ने

तब मेरे काम नहीं आना।


जब इस इंसान के लिए

उस यमराज का बुलावा आना।


इंसान खाली हाथ आया था

और उसे खाली हाथ ही है जाना।


बेटा मैं नहीं समझ पाया

कि यह जमाना है बेगाना

मुझे मेरे अपनों ने ही है दफनाना।


अब इस बात पर मुझे

पड़ रहा है पछताना।


बेटा, तुम मेरी एक बात

सुन के जाना।


मेरी मौत के बाद

अपनी आँखों में आँसू कभी मत लाना।


तुम्हें अपने परिवार और संसार के प्रति

अपना फर्ज है निभाना।


इस बात को तुम अपने

दिल और दिमाग में बैठाना।


इसे तुम्हें अपनी जिंदगी का

मूल मंत्र है बनाना।


बस अब मेरे से

और बोला नहीं जाना।

अब मुझे

उस खुदा के घर को है जाना।


पर याद रखना तुम्हें अपने पिता का

सिर ऊँचा कर के है दिखाना।।


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