आदमी जैसा भगवान
आदमी जैसा भगवान
एक आधुनिक भक्त
जब थका, टूटा सा।
पहुंचा, भगवान के द्वार
मंदिर में देखा, बंद हैं भगवान।
निरंतर आंसुओं का, प्रवाह लिए
हृदय में भक्ति का भाव लिए।
स्वर में विवशता, मन में चाहत
सब पाने की, लालसा में।
आवाज़ देने लगा
चौखट में सिर फोड़ने लगा।
भगवान ने देखा, परखा
मुस्कुराएं और बोले
क्यों आया है, मूर्ख यहां ?
जाता क्यों नहीं, धरती के
भगवान, रहते हैं जहां।
भक्त लगा कहने
प्रभू दया करो।
जब धरती के भगवान
ना कर सके निदान
तो शरण आया श्रीमान।
करो मेरी सहायता
नहीं तो मैं बन जाऊंगा।
नेता, व्यापारी या अधिकारी
लोग मेरी जय कार करेंगे
तुम जैसों को बंद रखेंगे
कोई नाम ना, लेने वाला रहेगा
पूछने की छोड़कर,
पानी को भी ना,
कोई पूछेगा।
हो जायेगी, सूनी धरती
ऊपर के भगवान से।
चहुंओर, दुराचार बोलेगा
नीचे के शैतान से।
लगे सोचने भगवान
कब तक बर्दाश्त करूंगा।
कभी तो मुझे बंद दरवाजा
खोलना होगा,
अपनी पहचान
को तो कायम रखना होगा।
कहा, जाआधुनिक भक्त
सावधान कर, पहचान बदलेंगी
धरती के भगवान की
अब होंगे भगवान।
दुर्लभ लोग,
सत्ता परिवर्तन होगी
और जय होगी
आदमी जैसे भगवान की।
