२०५० में
२०५० में
कहते हैं कि सब कुछ बदल जाएगा
२०५० आते-आते,
हवा भी, पानी भी,
इंसान भी, शैतान भी,
दोस्ती भी, दुश्मनी भी।
कैसा होगा २०५० ?
क्या पंछी उड़ रहे होंगे
आसमान में तब भी,
और समंदर में होंगी मछलियाँ,
नदियों का पानी होगा
पीने लायक,
या समुद्र का पानी हो जाएगा
मीठा तब।
दोस्तों से वार्तालाप और
प्रियतमा से प्रेमालाप,
मेरा कोई रोबो-मित्र
कर रहा होगा मेरी जगह,
रोबो-आई कर रही होगी
बच्चों की देखभाल,
या रोबो-नेता कर रहे होंगे
देश का नेतृत्व।
२०५० तक हो सकता है
कुछ बस्तियाँ मंगल पर बस जाए,
और कुछ समुद्र तल में,
या कुछ तैर रही हो प्रशांत सागर पर।
बहुत कुछ बदलेगा,
और हो सकता है
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कुछ भी ना बदले २०५० में,
किसने देखा है कल !
कहते हैं कि कालचक्र में
समय कैसा भी हो,
सच्चे दिल से माँगी दुआ,
क़बूल होती है कभी ना कभी।
इसलिए कल का फेर छोड़,
दुआ माँगता हूँ हर दिन, दिल से,
कि तब २०५० में,
जब खिड़की खोलूँ घर की,
तो चली आए हवा,
बिन बुलाए मेहमान की तरह,
और चली जाए जब मन चाहे उसका,
आज की ही तरह।
समंदर की गीली रेत पर,
लहरों के साथ खेलूँ
'छू-ले-मुझे' '
छू-मत-मुझे' का पुश्तैनी खेल,
और फिर लहरों को छोड़ वहीं,
लौट आऊँ घर अपने,
आज की ही तरह।
कल किसने देखा है,
पर दुआ तो माँग ही सकते हैं हम,
ख़ुद के लिए,
अपनों के लिए,
या फिर,
ग़ैरों के लिए ही सही।