मिलन दो आत्माओं का
मिलन दो आत्माओं का
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सुषमा अभी ऑफिस से आई थी,चाय पीकर सोफे पर आंखें बंद कर अधलेटी अवस्था में विचारों के सागर में
गोते लगा रही थी। भरे-पूरे परिवार में अब वह अकेली रह गई थी। पिछले साल तक तो मां थीं,अब तो ये सूना घर और सूना जीवन ही उसके हिस्से में रह गए थे। तब वह बी.काम द्वितीय वर्ष की छात्रा थी,जब पिता
को दिल का दौरा पड़ा था। एक पल में दुनिया उजड़ गई थी। चार छोटे भाई-बहन और बेपढ़ मां ... भरण-पोषण की समस्या सामने आ खड़ी हुई। समझ नहीं आ रहा था, क्या करे... ! तब पिताजी के एक दोस्त ने उसके लिए।
एक विद्यालय में नौकरी की बात की। नौकरी मिल गई ,पर मिलने वाला वेतन ऊंट के मुंह में जीरा था। उसने घर पर भी बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। मां सिलाई का काम करने लगी। चारों भाई- बहनों की पढ़ाई पर कोई आंच नहीं आने दी। खुद भी पढ़तीर रही। बी.एड.किया, सरकारी नौकरी के इम्तिहान दिए और एक दिन सफल हुई, जिंदगी पटरी पर आ रही थी...सभी सैटल हो गए थे
वह कुछ और सोचती...तभी दरवाजे की घंटी बजी...उसने अनमने मन से दरवाजा खोला...सामने एक शख्स खड़ा था...सुषमा अपना चश्मा सम्हाल कर उसे पहचानने की कोशिश कर ही रही थी कि पहचाना नहीं ! ऐसे क्या देख रही हो !
आवाज सुनते ही सुषमा चौंक पड़ी,माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आईं थीं-
राजन जी ! आप और यहां !
अवाक सी खड़ी रह गई वह, अंदर आने को नहीं कहोगी... !
उसने द्वार छोड़ दिया....राजन अंदर आकर सोफे पर बैठ गए। वह अभी भी वहीं खड़ी थी,जैसे पत्थर का बुत हो.. !
पानी मिलेगा... !
जी, अभी लाई,उसकी तंद्रा भंग हुई।
पानी लाकर दिया तो राजन ने पूछा -कैसी हो सुषमा ! अब तो सारी जिम्मेदारियां पूरी हो गई होंगी ?
आप यहां कैसे ? काम था कोई ?बीस वर्षों बाद आज.... ?
अचानक ! एक सांस में जाने कितने प्रश्न कर बैठी... !
तुम सब भूल गई क्या... ? या कुछ याद नहीं करना चाहती ?
आपके घर में सब कैसे हैं ? वह उत्तर देने की जगह प्रश्न कर रही थी।
याद करो सुषमा ! तुमने क्या कहा था ?
जी, मैं चाय बना लाती हूं,कतराते हुए सुषमा रसोई में चली गई, आंखों से गंगा-जमुना बह रही थी। राजन से उसने बेइंतहा प्यार किया था,पर पिता की मौत और अचानक आई जिम्मेदारियों ने उसके कदमों में बेड़ियां डाल दी थीं।
एक दिन उसने राजन से कह दिया था कि--अब हमारे रास्ते अलग हैं राजन ! तुम मुझे भूल जाओ और नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करो। मैंने अपने सपनों को दफन कर दिया है। अब न मुझे मोहब्बत करने का अधिकार है और न उसे निभाने का ! !
हम दोनों साथ मिलकर भी ये काम कर सकते हैं,सुषमा सच कहता हूं,तुम्हारी जिम्मेदारियां मेरी होंगी ,ऐसे तो
अपने प्यार का गला न घोंटो.. !
नहीं राजन ! तुम्हारा अपना परिवार है , माता-पिता हैं,उनको सम्हालो और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे... ! साफ शब्दों में उसने कह तो दिया पर दिल खून के आंसू रो रहा था।
मैं इंतजार करूंगा.. !
कब तक.. ?
जब तक तुम अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो जाती।
ये पागलपन है... ! जिंदगी में आगे बढ़ना राजन ! भूल जाना मुझे.. ! ! ये तुम्हारी सोच है, मैं इंतजार करूंगा..चाहे कितने ही वर्ष बीत जाएं... ! सुना तुमने.. !
सुषमा ने सुनकर भी अनसुना कर दिया। वह चुपचाप रोती हुई चली आई थी,उसके बाद न जाने कितनी बार वह राजन की याद में तड़पी ! अपना प्यार खोना उसके लिए आसान तो नहीं था,पर.... जज़्बातों
को दफन करके वह जिम्मेदारियों को पूरा करने में लग गई। सोच लिया था कि राजन तो जिंदगी में आगे बढ़
चुका होगा। मां ने कहा भी कि तू विवाह कर ले सुषमा !
मेरे बाद क्या होगा तेरा ?
तब उसे सिर्फ राजन ही याद आया था। उसने मां को समझा दिया था कि वह विवाह नहीं कर पाएगी और
ये भी...कि क्यों नहीं कर पाएगी ?सुन कर मां हतप्रभ हो गई थीं।
उस दिन के बाद पूरे बीस वर्षों बाद आज राजन यहां... !
क्यों ? किसलिए ?
चाय लेकर बाहर आई तो राजन अधलेटी -सी अवस्था में आंखें बंद किए थे , बालों में हल्की सी सफेदी आ गई थी।
चेहरे पर गंभीरता छाई हुई थी। पहले वाली मासूमियत अब भी बरक़रार थी।
जी,चाय लीजिए.. !
राजन ने चाय का प्याला उठा लिया..और कहां हैं आजकल तुम्हारे भाई-बहन.. ?
जी,मुझसे छोटी बहन लंदन में बस गई है और दोनों भाई बैंगलोर में रहते हैं। सबसे छोटी बहन का पिछले वर्ष ही विवाह किया था,वह दिल्ली में है।
तो तुम अकेली रहती हो यहां पूना में,उनके साथ क्यों नहीं ?
अरे ! वो अभी मेरी नौकरी है और आपके बच्चे.. ?
किसके मेरे....बच्चे तो तब होते जब तुम जीवनसाथी बनती !
क्या कह रहे हैं आप...तो क्या आपने ... विवाह नहीं किया। सुषमा सन्न रह गई,इतना प्यार करते हैं उससे
राजन,एकटक वह राजन का मुख देखे रही थी।
इंतजार कर रहा था तुम्हारा... ! ! ठठाकर हंस पड़े राजन। सुषमा उनका मुंह देख रही थी...ऐसे क्या देख रही हो.. ! प्यार किया था सच्चा..........तो निभाना तो था ही.. !
अब तुम बताओ.... ! तुमने विवाह क्यों नहीं किया,क्या सारी उम्र अकेली रहोगी ?अकेलापन नहीं लगता क्या ?
क्या बताऊं मैं....अब बाकी ही क्या है ? मैं कुछ सोचना भी नहीं चाहती ,जैसी हूं ठीक हूं विवाह वो भी अब बिल्कुल नहीं ? मैंने जीवन में सिर्फ एक बार ही किसी को चाहा था,अब और कुछ नहीं.. !
और मैं, मेरा क्या, मेरे बारे में क्या विचार है, बताओ तुमने क्या सोचा है... ? मैं तुम्हारे जबाव का इंतजार कर रहा हूं.. ! वैसे तुम्हें शायद नहीं पता मुम्बई जाने के बाद भी हर हफ्ते मैं तुम्हारी खोज-खबर लेता था,तुमने मना किया था, इसलिए मिला नहीं.. !
क्या कह रहे हैं आप... ! अब इस उम्र में ऐसा सोचना भी
पाप है,लोग क्या कहेंगे... ?
लोग... कितने लोग खड़े हुए तुम्हारी मदद को,और इस उम्र में ही सबसे ज्यादा साथ की जरूरत होती है,अब तुम्हें सुननी ही होगी मेरी बात.. !
राजन ! मैं...थरथरा रही थी वह...राजन ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया,इतने दिनों बाद किसी के स्नेहिल स्पर्श में उसके मन की भावनाओं को झंकृत कर दिया। पुराने दिन आंखों के सामने तैरने लगे।
भावनाओं का सागर उमड़ने लगा। नदिया की अविरल धारा तीव्र गति से बह निकली।
सागर को सामने देख लहरें उद्वेलित हो रहीं थीं। कब उसका सिर राजन के कंधे पर टिक गया ,पता नहीं चला। सारे द्वंद्व मिट गए थे। राजन... ! हूं...क्या सच में तुम मुझसे इतना प्यार करते हो...इतना बड़ा त्याग मेरे लिए.…मैंने तो सोचाथा तुमने घर बसा लिया होगा....सच पूछो ! तो मैंने हर पलतुम्हें याद किया है...जबसे ये सब चले गए,तबसे तो एक पल के लिए तुम्हें नहीं भुला पाई। सच.. ! फिर भी इतने प्रश्न क्यों...अच्छा छोड़ो ,अब बताओ, जीवनसाथी बनोगी मेरी...या अब भी..।
ओह राजन ! पर लोग ... समाज... मेरे भाई-बहन
सब क्या कहेंगे.. ?
कहने दो..क्या तुम मेरा साथ चाहती हो... ?या लोगों की परवाह करोगी, मैंने बीस साल तुम्हारा इंतज़ार किया है, क्या हम ऐसे ही एक-दूसरे के बिना अकेले रहेंगे, वो भी इसलिए कि लोग क्या कहेंगे ? अब तुम्हें अकेले नहीं रहने दूंगा।
हां ! अब तो मैं अकेले नहीं रह सकती,कहते हुए वह राजन से लिपट गई। बांहों में उसे भरते हुए राजन बोले...तो चलो,कोर्ट-मैरिज कर लेते हैं।
हां,राजन ! अब बस मैं अपने और तुम्हारे लिए जीना चाहतीबस, एक ऐसा संसार बसाना चाहती हूं, जहां बस प्यार ही प्यार हो... ! मैं हूं ,तुम हो और हमारे प्यार से सजा
सुन्दर संसार।
ऐसा ही होगा। एक अद्भुत मिलन हो रहा था, नदियाँ, सागर में मिल रही थी, आकाश धरती पर झुक रहा था। अधूरा प्रेम पूर्णता पा रहा था, प्रकृति मुस्करा रही थी।