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Abhilasha Chauhan

Inspirational

3  

Abhilasha Chauhan

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एक नयी पहल # फ्री इण्डिया

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रेलवे लाइन के पास बनी झुग्गियों में गरीबी का साम्राज्य था, मैले-कुचैले वस्त्रों में लिपटे बच्चे खेल रहे थे।इन झुग्गियों में रहने वाले कचरा बीन कर या कहीं मजदूरी कर अपना पेट पालते थे।रोशन अपनी मां और दो छोटी बहनों के साथ इन्हीं झुग्गियोंमें रहता था ,उसकी मां मजदूरी करती थी और पिता थे नहीं,घर आर्थिक तंगी से जूझ रहा था।रोशन पढ़ना चाहता था।पर उसके सामने बार-बार एक ही ख्याल आता.. मां की परेशानी का। इसलिए जूतों पर पोलिश करने का कामकरता था...वह एक स्कूल के सामने बैठता था और हसरतभरी निगाहों से स्कूल को ताकता रहता तथा अपना काम

करता।

रागिनी इसी विद्यालय में अध्यापिका थी ,वह रोशन को रोज विद्यालय के बाहर देखती और मन ही मन सोचती कि न जाने कैसे मां-बाप है ,जो इतने छोटे बच्चे से काम करा रहे हैं..उस बच्चे की निगाहों में जो हसरत थी,उसे रागिनी पहचान चुकी थी।घर आकर भी रागिनी उसी के बारे में सोचती.. फिर उसेवे मैले-कुचैले वस्त्रों में लिपटे बच्चे याद आते जो कचरा बीनते फिरते थे..उसका मन विचलित हो उठा था,क्या है इन बच्चों का भविष्य,,न अच्छी शिक्षा ,न साफ-सफाईन पोषण...ये आगे चलकर बड़े होंगे तो देश के लिए क्याकर पाएंगे???देश के लिए!!मैंने क्या किया है देश के लिए..अगर मैं इनबच्चों के लिए कुछ करूं तो वह भी तो देश सेवा ही होगी।उसने निश्चय किया..वह जरूर कुछ करेगी..।अगले दिन विद्यालय से निकलकर सीधा रोशन के पासपहुंची..बच्चा एकदम से झिझक गया..खड़े होकर बोला,"दीदी प्रणाम!!


"तुम्हारा नाम क्या है बेटा और तुम ये काम क्यों करते हो??"तुम्हें कोई रोकता नहीं??क्या तुम्हारी पढ़ने की इच्छा नहीं होती??एकदम से इतने प्रश्न सुन वह डर गया और अपनासामान समेटने लगा।


डरो नहीं !!बताओ मुझे,अभी तुमने मुझे दीदी कहा ना!!वह चुप रहा.. फिर बोला -"मेरा नाम रोशन है,मां मजूरीकरती है,पिता हैं नहीं ..सो वह मां का हाथ बंटाता है।"

"क्या तुम कभी स्कूल नहीं गए??"


"नहीं दीदी!!"


रहते कहां हो??उसने कच्ची बस्ती की ओर इशारा कर दिया।अगर तुम्हें पढ़ने का मौका मिले तो पढ़ोगे!!उसका चेहरा एकदम से चमकने लगा..फिर बुझ गया।अच्छा उदास मत हो..अगर तुम काम भी कर सको और साथ में पढ़ाई भी.तो करोगे!इस बार उसके चेहरे पर खुशी थी..ऐसा हो सकता है दीदी!

क्यों नहीं हो सकता, इंसान तो अपनी तकदीर खुदही बनाताहै,बेटा!!तुम्हारी तकदीर भी तुम्हारी मुट्ठी में है।


"सच दीदी!!आप मेरे दोस्त रामू को,मेरी गुड्डी और छुटकीको भी पढ़ाओगी!!


"हां क्यों नहीं..कल तुम सारे बच्चों को जो पढ़ना चाहें उसपार्क में बुला लेना इसी समय।


"ठीक है दीदी।"


रागिनी घर आ चुकी थी,सोच रही थी कि पढ़ाने के लिए सामान भी चाहिए होगा..अगर बच्चों से बोला तो कोईबच्चा नहीं आएगा।वह बाजार जाकर आवश्यक सामानले आई।अगले दिन आठ-दस बच्चे रोशन के साथ बैठे थे, जिनमेंसे दो-तीन तो जाने कबसे नहाए नहीं थे.. रागिनी उन्हेंलेकर पार्क में चली आई।सबका परिचय पाया..बच्चेवास्तव में पढ़ना चाहते थे..उनकी मुट्ठी में उनके ख्बावबंद थे..हर कोई कुछ न कुछ बनना चाहता था।उस दिनसिर्फ बातें हुई। रागिनी ने बच्चों को साफ-सफाई से रहनेका महत्व समझाया और कहा कि कल सब लोग नहाकर

साफ कपड़े पहन कर आएंगे।अगले दिन बच्चों का हुलिया ही बदला हुआ था,बड़े प्यारेलग रहे थे..उस पार्क में एक स्कूल चलने लगा था..बच्चेबड़ी शीघ्रता से सीख रहे थे। बच्चों के इस तरह से गायबहोने पर मां-बाप चिंतित हुए तो ढूंढते हुए आ पहुंचे पार्क में.. कुछेक मांए बोली कि "मैडम!इस सबसे इनका पेट

भरेगा क्या..काम सीखेंगे..तभी तो चार पैसे कमाएंगे।आप हमारे बच्चों को बिगाड़ रही हैं..हम इन्हें स्कूल तोभेज ही नहीं पाएंगे..चलो बच्चों घर चलो!!"


रागिनी ने उन्हें हर तरीके से समझाया..आखिर में बातउनकी समझ में आ गई.. बच्चों की पढ़ाई का महत्त्व

समझ में आया.. धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी,अब यह खबर मीडिया में पहुंच चुकी थी..खबर फैलते

ही समाजसेवी संस्थाएं मदद को आगे आने लगी।रागिनी बड़ी खुश थी... सबकी मदद से उसे बच्चों कोपढ़ाने के लिए जगह मिल चुकी थी।अब एक छोटा स्कूलवहां चलने लगा था।आज पंद्रह अगस्त है , झंडारोहण का कार्यक्रम हो चुका था ..बच्चे रंगारंग प्रस्तुति दे रहेथे.. देशभक्ति से परिपूर्ण वातावरण में आखिरी कार्यक्रमछोटे बच्चों का था..बच्चे गा रहे थे..


नन्हे-मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है।मुट्ठी में है तकदीर हमारी।


सारे बच्चे मासूमियत से मुट्ठियों को देख रहे थे..भला मुट्ठीमें तो कुछ भी नहीं है...गीत चल रहा था.बच्चों के मुख पर

वैसे ही भाव आ रहे थे..


"भीख में जो मोती मिले लोगे या न लोगे।जिंदगी के आंसुओ का बोलो क्या करोगे।"सारे बच्चे एक साथ बोले-


भीख में मोती मिले तो भी हम न लेंगे।

जिंदगी में आंसुओं की माला पहनेंगे।।


रागिनी बच्चों को देख रही थी..बच्चों की खुशी ,उनका यहउत्साह,कुछ करके दिखाने की चाह देख उसकी आंखें भीगउठी।इन बच्चों को वह स्वावलंंबी बना कर रहेेेगी।उसका प्रयास अनवरत जारी रहेगा।बच्चों के माता-पिता भी बड़े खुश थे, बच्चों की संवरतीजिंदगी देख भला कौन से माता-पिता होंगे जो खुश न

होंगे,कौन चाहता है कि उसका बच्चा कचरा बीने यामेहनत-मजदूरी करे।ये तो गरीबी का दानव है,जो सबकोअनचाहा करने पर विवश करता है।रागिनी ने अब अपना एनजीओ खोल लिया था।भीख माँगने वाले,ढाबे पर काम करने वाले,बालश्रमिक और शोषित बच्चियों को यातनामयी जीवन से मुक्त कराने का कार्य उसके जीवन का उद्देश्य बन गया था ।वह सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता के नए आयाम गढ़ रही थी,बचपन को बंधनों से स्वतंत्र कराकर पुनः खिलखिलाने का अवसर दे रही थी।



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