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Abhilasha Chauhan

Drama Romance Inspirational

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Abhilasha Chauhan

Drama Romance Inspirational

बिन फेरे हम तेरे

बिन फेरे हम तेरे

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रागिनी आज रिटायर हो रही थी। जीवन के इन साठ दशकों में उसने बहुत-कुछ देखा था।


अपने एकाकीपन को दूर करने के लिए उसने स्वयं को काम में पूरी तरह से डुबो दिया था। सहकर्मियों ने उसे विदाई देने के लिए छोटी सी पार्टी रखी थी।


उसकी हम उम्र नीता उससे पूछ बैठी, “अब तेरा समय कैसे कटेगा रागिनी!कैसे रहेगी अकेले तू।”


“अरे जब अब तक की गुजर गई तो आगे भी गुजर जाएगी, करेंगे कुछ।”


तभी चपरासी एक गुलदस्ता और कार्ड लेकर आया और बोला, “ये साहब आपसे मिलना चाहते हैं।”


रागिनी ने गुलदस्ता और कार्ड एक तरफ रख दिया, नाम भी नहीं देखा।


”ठीक है, भेज दो।”


थोड़ी देर में एक शख्स अंदर आया।


”जी, कहिए क्या काम है।”


सिर झुकाए रागिनी बोली।


“रागिनी! कैसी हो? अब तो सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुकी हो, मैं आज का ही इंतजार कर रहा था।”


स्वर सुन चौंक कर खड़ी हो गई

रागिनी... “राकेश तुम और यहां!! अचानक कैसे?”


“सारे प्रश्न अभी ही कर लोगी तो बाद के लिए भी कुछ छोड़ोगी! चलो बाहर चलते हैं।”


दोनों केफेटेरिया में आ गए।


”और सुनाओ राकेश इतने बरसों बाद मेरी याद कैसे आ गई? तुम्हारे बच्चे कैसे हैं?”


“बच्चे वो भी मेरे, कैसी बातें करती हो रागिनी! मैंने जीवन में सिर्फ तुम्हें प्यार किया था, तुम न मिली तो फिर किसी से मेरी नजरें न मिली या कहो कि कोई मुझे भाया ही नहीं।”


“क्या कह रहे हो ? मुझे तो यही पता था कि तुमने शादी कर ली है विदेश में!”


“नहीं ये जिसने भी तुमसे कहा ग़लत कहा। मैंने तो हमेशा तुम्हें चाहा, भले ही तुम्हारे साथ मेरे फेरे न हुए फिर मैं तन-मन से तुम्हारा ही रहा।”


रागिनी की आंखों से आंसू बहने लगे।


”मुझे माफ़ कर दो राकेश, माता-पिता के दबाव में मुझे विवाह के लिए हां करनी पड़ी। लेकिन मैं मन से उसे कभी अपना पति ने मान सकी, फिर मेरा तलाक हो गया क्योंकि उसकी गलत आदतें मुझे बर्दाश्त नहीं हुई। लेकिन मैंने हमेशा तुम्हें याद किया।शायद ही ऐसा कोई पल रहा हो जब तुम्हारी कमी न खलीहो।”


“तो अब क्या सोच रही हो रागिनी, अब भी समय है हम बाकी बची जिंदगी को खुशी-खुशी जिएंगे।”


“लोग क्या कहेंगे राकेश! अब इस उम्र में विवाह ! मजाक बन जाएगा हमारे प्यार का।”


“विवाह की क्या आवश्यकता है रागिनी? जब हम दोनों ही एक दूसरे के हैं तो समाज को इसका प्रमाण क्या देना। मैं तो इन बातों में विश्वास ही नहीं करता क्योंकि फेरे लेकर भी लोग एक-दूसरे को नहीं अपना पाते।अपने आपको ही देख लो।”


“सही कहा राकेश 'बिन फेरे हम तेरे'यही सच है हमारे लिए अब हम नई शुरुआत करेंगे।”


“बिल्कुल”, दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।


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