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Abhilasha Chauhan

Drama

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Abhilasha Chauhan

Drama

बंटवारा

बंटवारा

2 mins
400

संयुक्त परिवार में रहने का अपना ही मजा है और मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ था।मायके में भी हम पांच भाई बहन एक भरे-पूरे परिवार में रहते थे और विवाह के बाद

भी मुझे भरा-पूरा परिवार मिला।मेरी सासूजी थोड़ा कड़क मिजाज थी पर बाकी सब लोग बहुत ही अच्छे थे। मैंने सोच लिया था कि जबतक सास-ससुर हैं, उनकी सेवा करूंगी, उसके बाद तो सब वैसे ही अलग-अलग हो ही जाएंगे। लेकिन सोचा हुआ कहां पूरा होता है।

सब अच्छा चल रहा था ,इसी बीच देवर की शादी हुई। देवरानी बहुत ही रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखती थी।पर दुनियादारी से अनभिज्ञ थी।हम दोनों में आज तक

कोई लड़ाई नहीं हुई किन्तु फिर भी मुझे परिवार से अलग होने का निर्णय लेना पड़ा जिसपर मुझे आज भी गर्व होता है।

हुआ यूं कि देवर के बेटा हुआ तो सासूजी के दिमाग में अजीब से फितूर पलने लगे।पता नहीं क्यों उन्हें ये वहम

हुआ कि मैं अपने बेटे के हिस्से में आने वाली संपत्ति के हिस्सेदार (देवर के बेटे)को सहन नहीं कर सकती और उसके साथ कुछ भी बुरा कर सकती हूं।वे उसे मेरे पास आने ही नहीं देती।यदि उसका कुछ काम भी करती तो संदेह भरी दृष्टि से मुझे देखती।देवर-देवरानी दोनों नौकरीपेशा थे, अतः वे घर में घटित होने वाले बातों से अनजान रहते थे। सासू मां ने उनको भी यह सब कहना प्रारंभ कर दिया,विष अपना प्रभाव न दिखाए ये तो संभव ही नहीं। संबंधों में कड़वाहट का अहसास मुझे होने लगा था।बात बच्चे की थी, इसलिए जल्दी ही असर भी कर रही थी।मौन का बसेरा संबंधों का रस सोख रहा था।बेमतलब की बात पर भाई-भाई में दरार मुझे स्वीकार नहीं थी और मैं किसी को समझा पाने में खुद को असमर्थ महसूस कर रही थी। धन-संपत्ति का मोह तो मुझे कभी रहा ही नहीं था ,बस परिवार की खुशहाली प्यारी थी,पर वह दांव पर लगी थी। सासू जी के वहम को दूर करने का कोई इलाज नहीं था मेरे पास।आखिर मेरे पति

को भी सारी स्थिति ज्ञात हुई।तब मिलकर हमने निर्णय लिया-अलग रहने का, क्योंकि दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

आज हम अलग-अलग रह रहें हैं,पर संबंधों की कटुता खत्म हो गई है।जिस बच्चे को मुझसे दूर रखने का प्रयास किया गया,वह आज मुझसे लिपटा रहता है। तब लगता है कि उस समय अगर मोह न त्यागा होता तो आज शायद हम लोग एक-दूसरे का मुंह भी न देख रहे थे।


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