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Kunda Shamkuwar

Abstract Others Fantasy

4.3  

Kunda Shamkuwar

Abstract Others Fantasy

तस्वीरें

तस्वीरें

2 mins
338


कभी स्कूल के दिनों में जब मैं चित्र बनाया करती थी तो सोचती थी की बरगद के पेड़ के नीचे बैठने वाले एक बूढ़े आदमी की तस्वीर बनाऊँ लेकिन न जाने कैसे जो तस्वीर बनती थी वह उस बूढ़े की ना होकर किसी और की बनती थी !एक दूसरा ही आदमी !उस तस्वीर को देख मैं हैरान हो जाती थी। लेकिन फिर खुद की तसल्ली भी कर लेती थी की मेरे जैसे नये चित्रकार से ऐसे ही कुछ बनेगा न?

आज पता नहीं क्यों बहुत दिनों के तस्वीर वाली यह बात जहन में आ गयी। मेरे मन में फिर एक ख्याल और आया की कहीं ऐसा तो नहीं की मुझे बनाते हुए भगवान के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ हो? उसने मुझे एक बहुत ही सूंदर और अमीर शख्स बनाना चाहा होगा लेकिन मै एवरेज शक्ल सूरत वाली और लोअर मिडल क्लास की एक लड़की बन गयी हो जो आये दिन अपने ख्वाबों और हक़ीक़त के संग ज़ंग लड़ती रहती है। 

बचपन की माँ की कहानियों पर मेरा यक़ीन हो गया। माँ अक्सर कहा करती थी की हमारे अंदर भी भगवान होता है बल्कि वह तो कण कण में भगवान होने की बात कहा करती थी। मेरी तस्वीर वाली बात जहन से कौंधतें ही ही मुझे यक़ीन हो गया की भगवान भी मेरे जैसा ही है। मेरे से वह अलग थोड़े ना है। उससे भी तो मेरे जैसी ग़लती हो सकती है !

हाँ !!! उससे ग़लती ही हो गयी है!!! 

मुझे यह थॉट कॉन्विनसिंग लगा। 

आज फिर मै कई सालों के बाद पुरसुकून महसूस करने लगी.......

अब न तो किसीसे कोई शिक़वा है और ना ही कोई शिक़ायत भी। यह दुनिया और इसकी एक एक चीज़ अब मुझे रंगबिरंगी और ज्यादा खूबसूरत लगने लगी है......


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