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चुनाव

चुनाव

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 जीवन की सांध्यबेला में नन्दिनी उहापोह की स्थिति में आराम कुर्सी पर बैठी हुई थी ।घर का सब जरूरी सामान बाँधा जा रहा था ।उसका मन विचलित हो रहा था कि जिस घर को इतने प्यार से बनाया सँवारा और सजाया था आज उसी से सब माया मोह तोड़नें के लिये कहा था रहा था ।कभी वो मानसिक तौर पर अशक्त व वृद्ध पति को देखती तो कभी लगातार कार्य करते बेटी व बेटे की ओर निरीह भाव से तकती ।विदेश में नौकरी करता बेटा अपनी नौकरी छोड़ कर यहाँ आ कर रह नही सकता था और उसी शहर में रहने वाली बेटी के पास वो जाना नहीं चाहतीं थी ।

   तभी पास से आती नाती की प्यार और अपनत्व भरी आवाज ने उनका ध्यान भंग कर दिया । किस सोंच विचार मे लगी हुई हो नानी ।आप चाहती हैं ना कि हम सदा आपके आस पास रहें तो यह तभी सम्भव है कि हम एक साथ रहें ।आप चलिये सब साथ में रहेंगे।वहाँ आपकी देखभाल भी हो जायेगी और मामा भी परदेश में निश्चिन्त हो कर नौकरी कर पायेंगे ।

     अब समय ऐसा आ गया था कि उन दोनो वृद्धजनों को भी अब इस बूढे होते घर मे अकेले छोड़ा नहीं जा सकता था पता नहीं कब क्या हो जाये ।अभी इतना जरूर था कि शरीर से अशक्त होते हुये भी वह मानसिक तौर पर पूर्णता स्वस्थ थी ।सब उनके निर्णय को पूरा मान देते थे परिस्थितियों ने आज उन्हे यह चुनाव करने को मजबूर कर दिया था कि जीवन का बचा हुआ समय अकेले रह कर गुज़ार दे।या फिर बेटी दामाद के पास जाकर सबके साथ हँस बोल कर गुज़ारे।



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