माँ सच कहती थी
माँ सच कहती थी
जल्दबाज़ी में सूट पहन खुले बालों मे कंघी फेरते हुये आइने में खुद को निहारते हुये अचानक मन अतीत मे चला गया ।
विवाह के बाद मायके आने पर जब भी सलवार सूट पहनने की चाहत प्रगट की माँ नें साफ़ मना कर दिया कहा “जब ससुराल में पसन्द नहीं तो कोई जरूरत नहीं यहाँ भी पहनने की ।और हाँ तुम्हारे पापा को भी पसन्द नही अब तुम्हारा सलवार सूट पहनना ।शादी के बाद बेटियाँ साड़ी में ही अच्छी लगती हैं ।”क्या करती मन मार कर साड़ी ही पहनने लगी ।कुछ समय बाद भाई की शादी हुई ।हमनें पाया कि भौजाई अपने साथ लाये कपड़ों मे सलवार सूट भी लाई थी ।हमें अच्छा लगा चलो उसकी माँ ने उसकी इच्छा को मान दिया ।हमारी तो मन की मन में ही रह गयी ।
कुछ समय बाद फिर जब हमारा अचानक मायके आना हुआ तो हमनें देखा माँ भौजाई से कह रही थी “रसोई में साड़ी पहन कर सर ढक कर काम करनें की जरूरत नहीं है ।जिन कपड़ों में सहूलियत महसूस करो वो पहनो ।”भाई ने हमें चुपके से माँ के बदलते व्यवहार को दिखाया वो खुद भौजाई को एप्रेन दे रही थी ।मन को खुशी हुई ।अकेले में माँ से बोली “तुम अपनी बहू को तो सूट पहनने देती हो और बेटी को मना करती हो ।”माँ मुझे समझाते हुये बोली “वो बहू है हमारी उसके मन का ख्याल रखना हमारा फ़र्ज़ है हम आज उसका ख्याल रखेंगे उसे समझेंगे कल को वो हमें समझ कर हमारा ख्याल रखेगी ।और तुम दूसरे घर की बहू हो और वहाँ के लोगो की भावनाओं का ख्याल रखना तुम्हारा फ़र्ज़ है अगर हम तुम्हें उन लोगो के ख़िलाफ़ जाने में साथ देंगे तो तुम्हारा घर बिखर जायेगा पहले अपने गुणों से सबके दिल में जगह बनाओ फिर अपने दिल की ख़्वाहिश पूरी करो ।और हम तो बहू के साथ बस वही कर रहे है जो व्यवहार हम तुम्हारे लिये तुम्हारी ससुराल में चाहतें हैं ।देखना एक दिन सब बदल जायेगा ।”
लम्बे समय बाद हम जब बीती बातों को याद कर सोंचने बैठे तो पाया कि माँ सच कहती थी ।