Ira Johri

Abstract Others

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बादशाही चटनी(लघुकथा)

बादशाही चटनी(लघुकथा)

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उनके हाथ से बनी चटनी में ग़ज़ब का स्वाद था। बचपन में जब उनके बाबू कचहरी से आते खाना खाते समय घर में नौकरों के होते नये भी उन्हें बिटिया के हाथों से पिसी चटनी ही चाहिये होती थी किसी और के हाथों से पिसी चटनी को वह देख कर ही पहचान जाते थे । शादी हुई वहाँ भी सभी लोग उनके हाथों से बनी चटनी के दीवाने थे ।खार तौर पर बादशाही चटनी के। कमी तो बस एक ही शख़्स निकालता था वह थे उनके परमप्रिय पति परमेश्वर ।और उनके कान उनके मुँह से अपनी तारीफ़ सुनने के लिये सदा तरसते रह जाते थे।  क्या मजाल कि कभी पत्नी की तारीफ़ मुँह से निकल जाये। उनकी इस चाहत को उनकी जिठानी ने समझा और कहा कि “अगली बार जब तुम यहाँ आना अपनी बनाई बादशाही चटनी साथ लेती आना और कमाल देखना।” अबकी जब वो जिठानी के पास आईं। उन्होंने ऐसा ही किया ।खाना खाते समय पूरा खाना मेज पर लगाया गया साथ में वह चटनी भी थी ।सभी ने भोजन के साथ प्रेमपूर्वक वह चटनी भी परोसी। चटनी के स्वाद का चटकारा लेते हुये आज वो बोले “ भाभी चटनी तो बहुत स्वादिष्ट और ज़ोरदार बनी है जरा अपनी देवरानी को भी सिखा दो।"   तभी बड़े भइया हँसते हुये बोले “ अरे यह चटनी तो बहू ने ही बनाई है। आज पता चल गया कि तुमको तो स्वाद की पहचान ही नहीं है। इसी चटनी को तुम रोज ही अपने घर में खाते हो पर कभी तारीफ़ नहीं करते जब कि हम सबको बहू के हाथ की बनी चटनी बहुत ही अच्छी लगती है।"  आगे वो बहू को सुनाते हुये बोले" अरी बहू सुना तुमने तुम जिस चीज की तारीफ़ सुनना चाहो यही रख जाया करो।" हा हा हा!!!!!



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