मेरे विचार
मेरे विचार
आज जब खरी खरी कहने का सुनहरा मौका मिला है तो मौके पर चौंका लगाते हुये हम कुछ इस तरह अपनी बात कहना चाहेंगे।
बड़े छोटे और घरेलू मंचों पर हम अपनी प्रस्तुति कई बार दे चुके हैं। सभी मंचों पर जो मुख्य बात मुझे महसूस हुई वह यह कि कुछ वक्त तो इतना अच्छा बोलतें हैं कि दिल करता है कि उनको बस सुनते ही चले जायें। जबकि कुछ इतने धाकड़ होतें हैं कि वाचन की अवधि समाप्त होंने पर भी लगातार सबको अपनी रचना सुनाने में लगे रहते हैं चाहें श्रोता नींद के झोंके ही क्यों न लेने लगे।
अक्सर मंचों पर लोगों को अपना प्रशस्ति-पत्र भी लेने की बहुत जल्दी होती है। साथ ही छपास रोग से ग्रसित होने के कारण जैसे ही किसी नामी पत्रिका का फोटोग्राफर सामने आता है सब आपसी शिष्टाचार तक भूल फोटो खिंचवाने में जुट जातें है।
आजकल साहित्य लेखन भी एक व्यापार बन गया है। तो बहुत से लोग साहित्यकारों से ही मोटी रकम ले फिर उन्हें मंच पर सम्मानित करने का खेल भी रच रहें हैं इससे साहित्य के श्रद्धापूर्ण क्षेत्र में भी इन सम्मान पत्रों की विश्वसनीयता भी घटने लगी है। हमें जो महसूस हुआ वह हमनें कह दिया। किसी की भावनायें आहत हुई हों तो क्षमाप्रार्थी हूँ।