अर्चिता
अर्चिता
इशू अपने बाबा का बहुत ही सिरचढा लाड़ला पोता था ।बाबा पोते के प्यार के बीच किसी को भी आने की हिम्मत नहीं पड़ती थी यहाँ तक कि दादी भी बीच में कुछ नहीं बोल सकतीं थी । यूँ इशू के और भी भाई बहन थे पर सबसे छोटा और सबका लाड़ला होने के कारण वह चाहे जो करे उसे कोई कुछ नहीं कहता था ।इशू के बाबा अपनें पास एक चॉक का डिब्बा रखते थे ।खाली समय में वो घर में ही बच्चों को पढ़ाया करते थे ।और साथ ही छोटे बच्चों को चॉक दे कर व्यस्त भी रखते थे ।आज घर के सभी लोग बच्चों को बाबा के पास छोड़ कर अस्पताल गये हुये थे ।नन्हा इशू बाबा से चॉक ले कर पेटी पर चढ़ कर दीवार पर चित्रकारी करने लगा ।उसे इस तरह चित्रकारी करते देख बाबा नें हँसते हुये कहा “अरे वाह क्या बनाया है बाबा के सूरज नें ।”
इशू ने वैसे ही बाबा को उत्तर दिया “बाबा बाबा आप कहतें हैं ना कि मैं आपका सूरज हूँ ।हमने सूरज के साथ देखिये किरण भी बनाई है ताई अस्पताल गयीं हैं देखियेगा हमारी बहन को ले कर आयेंगी ।”
तभी बाबा की जेब में पड़ा मोबाइल बज उठा ।अस्पताल से खबर आई कि “उनके गुलशन में नन्ही कली का आगमन हुआ है ।”
बाबा नें खुश हो कर नन्हे इशू को गोद में उठा लिया और उसको एक और चॉक देते हुये बोले लो तुम्हारी इच्छा पूरी हुई तुम्हारी ताई तुम्हारे लिये बहन लाई है ।अब तुम ही उसका नाम रखना ।और नन्हे इशू ने बाबा के साथ उसका नाम “अर्चिता “रख दिया ।