Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational Thriller

4  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational Thriller

अनिरुद्ध के प्रेरक महाराणा प्र

अनिरुद्ध के प्रेरक महाराणा प्र

7 mins
612


"सर , आप तो कहते हैं कि हमें हमेशा शांति की ही बात करनी चाहिए ।जहां तक हो सके युद्ध से बचना चाहिए जैसा कि आप महाभारत की कहानी सुनाते समय भी आपने बताया था कि जब यह लगभग सुनिश्चित ही हो गया था कि कौरव और पांडवों के बीच में युद्ध होगा फिर भी योगिराज श्रीकृष्ण जी ने युद्ध को टालने के लिए पांडवों की ओर से शांतिदूत की भूमिका निभाते हुए पांडवों के लिए केवल पॉंच गांव देकर युद्ध न हो इसके लिए अंतिम प्रयास के रूप में शांति का प्रस्ताव हस्तिनापुर की राज्यसभा में रखा था।अब आप हमें यह समझाइए कि शांति के प्रयास के प्रतिकूल भावना दर्शाते हुए फिल्म 'जागृति' के गीत " यह है अपना राजपूताना, नाज़ इसे तलवारों पे; इसने सारा जीवन काटा, बरछी तीर कटारों पे;" के माध्यम से संदेश देने की कोशिश की गई है। हमारे भारत देश का राजपूताना जो हमारा वर्तमान राजस्थान है। इसकी युद्ध की घटनाओं पर अभिमान करने की बात कही गई है। इसमें कोई थोड़ी समयावधि की नहीं बल्कि पूरे जीवन को बरछी ,तीर ,कटार के साथ जीवन बिताने यानी आजीवन युद्ध करने की भावना को स्वाभिमान का विषय माना गया है। ऐसा क्यों?"-अनिरुद्ध ने मुझसे कहा।

अनिरुद्ध मेरी कक्षा के उन सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थियों में से एक था जो उस परिवार का बच्चा था जिसने अपने एकमात्र जीविकोपार्जन करने वाले सदस्य को अर्थात अनिरुद्ध के पिताजी को खो दिया था। उसकी मां अपने घर में ही दूसरे बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन देकर उससे होने वाली आय के द्वारा घर को संभाल रही थीं। अनिरुद्ध अपने पिता का बड़ा ही दुलारा बच्चा था। पिता के सामने उसके जो क्रियाकलाप थे उन्हें देखकर उसके माता-पिता और हम सभी अध्यापकगण तक बड़े ही चिंतित रहते कि यह बच्चा किसी बात को गंभीरता से नहीं लेता। न पढ़ाई लिखाई ,न विद्यालय की पाठ्य सहगामी क्रियाकलापों में भागीदारी; केवल हुड़दंग, हुड़दंग और केवल हुड़दंग। वही अनिरुद्ध अपने पिता के असमय निधन के बाद एकदम बदल गया। लगता है अपने पिता की मृत्यु के बाद संभवतः उनके द्वारा कही गई बातों को जिन्हें इसने उनके जीवित रहते हुए बार-बार समझाने के बाद भी समझने की कोशिश नहीं की। बदलते समय के अनुसार इसने अब समझा है। पिता की मृत्यु के बाद वह पढ़ाई लिखाई ,पाठ्य सहगामी क्रिया कलाप जैसे खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम में बड़ी तल्लीनता के साथ भाग लेने लगा। जो बच्चा पहले पानी पीने के बाद अपना गिलास किचन की सिंक में ठीक से नहीं रखता था। आज वह घरेलू कामों में मां का हाथ बंटाता है।आज निश्चित रूप से ही यह कहा जा सकता है कि पिता की मृत्यु ने उसे जीवन के प्रति उसके दृष्टिकोण को बदल दिया है।जीवन पथ को समझने के लिए पिता की असमय मृत्यु ने इसे एक प्रेरणा और संवेदना प्रदान की है। संभवत इसी का यह परिणाम है कि अनिरुद्ध आज अपनी कक्षा का ही नहीं बल्कि पूरे विद्यालय के सबसे ज्यादा गंभीर विद्यार्थियों में से एक समझदार बच्चे के रूप में जाना जाता है।

"बेटा अनिरुद्ध,शायद अभी तो तुम्हारे गीत नाटक का रिहर्सल चल रहा होगा । कहीं तुम मुखर्जी सर से बिना पूछे तो नहीं आ गए? नहीं तो वह मेरी क्लास ले लेंगे कि आपने अनिरुद्ध को सिर पर चढ़ा रखा है जिसके कारण वह मेरी अवज्ञा करके रिहर्सल बीच में छोड़ कर के आपके पास दौड़ा दौड़ा चला आया ।वैसे ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन अगर ऐसा है तो यह ठीक नहीं है।अभी तुम रिहर्सल में जाओ , जब रिहर्सल खत्म हो जाएगा तब हम बाद में बात कर लेंगे।"-मैंने अनिरुद्ध से प्रश्न उसके संभावित उत्तर और उसके संभावित अगले कदम के बारे में समाधान के रूप सुझाव देते हुए कहा।

एक सप्ताह के बाद विद्यालय में आयोजित होने वाले स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम पर एक गीत नाटक की तैयारी हमारे विद्यालय के संगीत अध्यापक  श्री केदार नाथ मुखर्जी जी के दिशा निर्देशन में हो रही थी। हमारे मुखर्जी सर अनिरुद्ध की गायन कला, उसके स्वर एवं नृत्य और अभिनय की कला में होने वाले उत्तरोत्तर निखार को लेकर बड़े ही प्रसन्न रहते हैं।वे जब भी जब अकेले में मुझसे बात करते तो अनिरुद्ध की बड़ी प्रशंसा करते हैं लेकिन अनिरुद्ध के सम्मुख वे उसमें उत्तरोत्तर सुधार करने की प्रेरणा अनवरत देते रहते।

"मुखर्जी सर ने हम लोगों को दस मिनट का ब्रेक दिया है। इस गीत को सुनने के बाद मेरे मन में जो भावना आई उसे मैं आपके साथ साझा करने के लिए व्याकुल हो गया ।मैंने सोचा अभी तुरंत अपनी मन में आए इस विरोधाभासी विचार के बारे में आपका विश्लेषण समझ लूं। किसी भी अध्यापक की अनुमति के बिना कक्षा या किसी क्रियाकलाप से गैर हाजिर हो जाना शिष्टाचार के प्रतिकूल है। मैं कभी भी ऐसी भूल भूलकर भी नहीं कर सकता। मैं तो शिशोदिया कुल के भूषण महाराणा प्रताप के बारे आपसे जानने के लिए आपके पास आया हूं। "-अनिरुद्ध ने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा।

तुमसे एक और गीत भी सुना होगा, -'अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं, सिर कटा सकते हैं लेकिन सिर झुका सकते नहीं'। अपने वीर मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज और राजपूताना मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप ने इस भावना को आजीवन निभाया। महाराणा प्रताप जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी अपना धैर्य और स्वाभिमान नहीं खोया। परिस्थितियों के प्रतिकूल होने पर वे जंगलों में भटकते रहे उन्होंने और उनके परिवार ने विकट परिस्थितियों में घास की रोटियां खाईं। अपने दृढ़ निश्चय और स्वाभिमान को नहीं खोया। आजीवन प्रण को निभाया कि वे जब तक चित्तौड़ को मुगलों से मुक्त नहीं कर लेंगे तब तक चारपाई पर नहीं सोएंगे ,न ही सोने चांदी के बर्तनों में खाना नहीं खाएंगे। उनके इस प्रण को उनके कई वंशज आज भी उनको निभाते हुए घुमंतू बने हुए हैं।"

"स्वाभिमान की रक्षा के लिए मृत्यु का वरण करना भी उचित है। गीधराज जटायु ने सीता का अपहरण कर ले जा रहे  त्रिलोक विजयी रावण से भी युद्ध किया जब उन्हें इस बात का उन्हें भली-भांति भान था इस युद्ध में संभवतः उनकी हार और मृत्यु निश्चित है लेकिन उन्होंने अपने कर्तव्य को निभाने के लिए रावण से युद्ध किया था। उन्होंने युद्ध केवल रावण से ही युद्ध नहीं किया बल्कि युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने के बाद मृत्यु से भी युद्ध किया था। उन्होंने मन में यह दृढ़ निश्चय कर रखा था कि वे  माता सीता के अपहरण की सारी जानकारी प्रभु श्री राम को नहीं बता देते तब तक मृत्यु उन्हें छू भी न सकेगी और ऐसा ही हुआ। प्रभु श्री राम को रावण के दुस्साहस की सारी कहानी सुनाने के बाद उनकी ही गोद में महात्मा जटायु ने अपने प्राण त्यागे और उनके परमधाम को प्राप्त किया।"-अनिरुद्ध को महाराणा प्रताप की कहानी बताने से पूर्व भूमिका के रूप में मैंने अनिरुद्ध को कहा।

अब मैं तुम्हें महाराणा प्रताप के बारे में संक्षेप में बताता हूं-"महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ईस्वी में राजस्थान के कुंभलगढ़ क्षेत्र में हुआ था और 19 जनवरी 1597 में उनका स्वर्गारोहण अपनी नई राजधानी चावंड में हुआ था।उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह और माता का नाम रानी जीवंत कंवर था ।उन्हें बचपन से ही ऐसी शिक्षा दी गई थी जो उनके जीवन के हर वृत्तांत में परिलक्षित होती है। उन्हें उन्होंने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े लेकिन सबसे अधिक उन्हें जून 1576ईस्वी में लड़े गए हल्दीघाटी के युद्ध के लिए याद किया जाता है। हल्दीघाटी के इस युद्ध में उनके घोड़े घोड़े चेतक की वीरता भी याद की जाती है। महाराणा प्रताप ने 20,000 सैनिकों के साथ अकबर के 85,000 सैनिकों सेना के साथ बड़ी ही बहादुरी से स्वतंत्रता के लिए युद्ध किया था। महाराणा प्रताप की कुशल युद्ध रणनीति का ही परिणाम था युद्ध अनर्णित रहा।वे एक बहुत ही कुशल शासक थे ।उन्होंने मेवाड़ को जब मुगलों से स्वतंत्र करवा लिया उसके बाद उनके शासनकाल में कोई मुगल उनके शासन क्षेत्र में कदम रखने का दुस्साहस नहीं कर पाया था। महाराणा प्रताप के साथ युद्ध का कोई अंत न होता हुआ देखकर अकबर ने कई बार उनके साथ शांति के प्रयास किए लेकिन हर बार महाराणा प्रताप ने अकबर के शांति प्रस्तावों को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि शांति प्रस्तावों को मानने का अर्थ है कि दुश्मन की कुछ शर्तों के सामने हार मान लेना और वे पराजय कभी स्वीकार नहीं कर सकते।"

अनिरुद्ध ने भावुक होते हुए कहा- "सर 'हमारे देश में शिवाजी और महाराणा प्रताप जैसे संघर्षशील लोगों की जीवन हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हमें अपने जीवन में कठिन से कठिन समस्याओं का डटकर मुकाबला करना चाहिए अगर हम अपने धैर्य साहस नियोजन और अनुशासन के साथ युद्ध क्षेत्र में डटे रहते हैं तो एक न एक दिन निश्चय ही सफलता हासिल कर सकते हैं।"

अनिरुद्ध मेरे चरण स्पर्श करके मुखर्जी सर के पास रिहर्सल में भाग लेने के लिए चला गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract