आखिर कब तक??
आखिर कब तक??
वो जनकपुर की राजकुमारी थी,
राजा जनक को सभी से प्यारी थी।
स्वयंवर रचा गया वर चुनाव में तो,
रामजी को वरमाला पहनाई।
विवाह हुआ सब की सहमति से,
और अपने ससुराल अयोध्या आयीं।
वनवास हुआ जब रामजी को,
वो भी साथ साथ चल पडी़।
अर्धांगिनी होने का फर्ज
वह निभाने के लिए हुई खड़ी।
अकेले थीं कुटिया में एक दिन,
लक्ष्मण ने एक दहलीज बनाई।
रावण ने अपहरण किया और,
दी सीता की चीख सुनाई।
इंतजार किया अशोक वाटिका में,
फिर हनुमान जी का संदेशा आया,
युध्द के बाद रावण को मारा,
बुराई पर अच्छाई का नाम बनाया।
संघर्ष बाकी था अब भी क्योंकि,
सीता जी को अंदेशा भी हुआ नहीं।
चरित्र पर शंका अयोध्यावासी को,
क्या रावण ने कभी भी छुआ नहीं।
लोकलाज के भय से दूर हुयी,
लव-कुश को वीरो जैसे बड़ा किया।
अयोध्या पहुंचे पुञ वो दोनों महफ़िल में
कोई ना सामने आने का साहस किया
अपनाया पुञ को अपने भरी महफ़िल
अग्निपरीक्षा देकर लोगो से सवाल पूछा,
नारी के लिए इतना संघर्ष कब तक ?
दहलीज की वो रेखा कब तक ?
नारी का अपहरण कब तक ?
नारी के पर संदेह कब ?
और नारी की अग्निपरीक्षा कब तक ?
रोकने लगे जब राम जी तो फिर,
पुञ को सौंप कर जानें लगीं।
कहा अब मेरे संघर्ष की सीमा न रही,
और धरती की गोद में समाने लगी।