नजरें चुराते हैं !
नजरें चुराते हैं !
जिनसे
मोहब्बत है,
हमें
दिलों जान से,
आज
वे ही
हमसे नजरें
चुराते हैं,
बहाते
होंगे
आँसू
वे भी
रूसवाइयों में,
ना जाने
क्यूँ,
निगाहें
मिलाने से
कतराते हैं,
हर
जर्रे-जर्रे में
वे इस कदर
समाये हैं,
मेरे हर
लहू के
कतरे-कतरे
में सिर्फ
उनकी ही
वफाएँ हैं,
खुद को
तो मैं
मिटा लूँगी
मगर
खुद में से
उन्हें कैसे
मिटाऊँगी !