मौन
मौन
तेरे और मेरे इस मौन ने आज
गढ़ ली है देखो अपनी ही भाषा
शब्द सारे कैसे महत्वहीन हो गये।
बोलने लगे हैं नैन
पीर तेरे नैनों की
मेरे हृदय में उतर आई है।
और विचारों का जो भूचाल
उमड़ आया है मेरे मन में
कितनी सहजता से भाँप लिया तुमने।
फिर तुम्हारे हाथों नें बढ़कर
थाम लिया मेरा हाथ
और शांत हो गया वो भूचाल।
कैसा ये मतैक्य सा आ गया
अपने इन विचारों में
दोनों ही को फर्क नहीं पड़ता
दुनिया की बातों का।
सब कुछ हो गया है गौण
बस मुखरित है
तेरे मेरे बीच ये मौन।