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Madhu Gupta "अपराजिता"

Classics Fantasy Inspirational

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Classics Fantasy Inspirational

"विकलांग"

"विकलांग"

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विकलांगता श्राप है !

शायद नहीं.... 

यदि वो हमारे देह के, 

किसी अंग को विकलांग करती हैं, 

तो शायद नहीं...... 

हैं यदि देह का अंग कोई विकलांग

देख कर उस वक़्त हम अपनी विकलांगता

हो जाते हैं कमजोर ज़रूर

और गिरने लगता हैं मनोबल हमारा

हम अपने आपको.....


असहाय और दूसरों की नज़रों में

ख़ुद को कमकर और बेसहारा

समझने की भूल कर बैठते हैं.... !! 

माना थोड़ा कठिन होता है, 

समाज और लोगों के साथ समाजस्य बैठालना

लेकिन मन में दृढ़ संकल्प का पारा

यदि चढ़ा हो.... 

उस वक़्त देह की विकलांगता

नहीं कर सकती हैं हमें कमजोर....!

हाँ..!! मिले यदि साथ समाज और लोगो का, 

तो हर वो विकलांग व्यक्ति

बना सकता हैं आसान अपना जीवन

और हर उस व्यक्ति से...... 


मिला कर कांधा निकल सकता हैं आगे, 

उन्हीं की तरह....!! 

हाँ...!! यदि इसी के विपरीत, 

यहीं विकलांगता हमारे आस पास

हमारे दिमाग़ों और समाज में..... 

 ऊंच - नीच का भेदभाव, अमीरी ग़रीबी, 

और अनेकों समाज में व्याप्त कुरीतियाँ

जो बनाती हैं हमें और हमारे समाज को

विकलांग.....!


और ऐसे तमाम पाखंड और अंधविश्वास

करते है दूषित और विकलांग हम सबको

हैं बड़ी.. देह से....!! यह विकलांगता,

जो कर जाती है हमारे समाज को .... 

क्षत- विक्षत और दूषित.....!


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