आखिर कब तक ?
आखिर कब तक ?
क्या लिखूं कैसे लिखूं आखिर कब तक ?
हजार बार सवाल आता हैं ? जवाब नहीं
सब कुछ ठीक नहीं हैं, सबको पता हैं मगर
सच कहने की हिम्मत, जरुरत हैं की नहीं ?
दुर्योधन, कृष्ण, शकुनि सब कुछ वही हैं
चारों तरफ हाहाकार, भाग दौड़,छलकपट
मारो, काटो, चीख पुकार बिल्कुल वही हैं
अश्वमेध घोड़ा ? रोकने की हिम्मत किसी में नहीं हैं।
सच मत कहो, सिर्फ देखते रहो
चुपचाप सहो, उनके गुणगान गावो
जो चाहे वो पावो, दूधो नहावो पुतो फलो
यह कैसा लोकतंत्र ? कौनसी आजादी हैं ?
रोटी, कपड़ा, मकान का नहीं ठिकाना
दुनिया पर राज करने के सपने मुंगेरीलाली
वो रोये तो रोते, हंसे तो हंसे गुलामों की टोली
कुछ कहे तो भोंके, काटे खेले खून की होली।
कुछ समझ मे नहीं आता, करे भी तो क्या करे ?
फिर एक बार लड़नी पड़ेगी आजादी की लड़ाई ?
या चुपचाप सहेगी जनता १५० साली सत्ता फिरंगी ?
क्या होगा पता नहीं, किसी को अहसास है न कोई खता।
करे भी तो क्या करे ? पेट के पीछे भागे सभी
वक्त किसको जगने - जगाने को भाई ?
क्या लिखूं कैसे लिखूं आखिर कब तक ?
हजार बार सवाल आता हैं ? जवाब नहीं।