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Abasaheb Mhaske

Romance

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Abasaheb Mhaske

Romance

बिछड़ना ही था तो ...

बिछड़ना ही था तो ...

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बिछड़ना ही था तो 

मिली ही क्यों उस मोड़ पर

चली गई यूँ ही तुम तो

मुझे अकेला छोड़कर


सूना - सूना आँगन है

हमेशा की तरह

चहकती नहीं चिड़िया

न खनकती हैं चूड़ियाँ


दीवारें बिलकुल चुप हैं

बिल्ली मुँह मोड़ के चली गई

घर रसोई, खाना परोसना

न देखते हुए दुःखी होकर 


पेड़ पौधे, फूल बगिया में

सूखे पड़े राह देखे इंतजार तेरा

उम्मीदें लगी हैं अब तक

एक न एक दिन तू ज़रूर आएगी


दिल कहता तुम होगी ज़रूर

रिमझिम बरसते सावन की तरह

जैसे अमावस के बाद पूनम की रात

पतझड़ के बाद ..बन के, बसंत बहार



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