बिछड़ना ही था तो ...
बिछड़ना ही था तो ...
बिछड़ना ही था तो
मिली ही क्यों उस मोड़ पर
चली गई यूँ ही तुम तो
मुझे अकेला छोड़कर
सूना - सूना आँगन है
हमेशा की तरह
चहकती नहीं चिड़िया
न खनकती हैं चूड़ियाँ
दीवारें बिलकुल चुप हैं
बिल्ली मुँह मोड़ के चली गई
घर रसोई, खाना परोसना
न देखते हुए दुःखी होकर
पेड़ पौधे, फूल बगिया में
सूखे पड़े राह देखे इंतजार तेरा
उम्मीदें लगी हैं अब तक
एक न एक दिन तू ज़रूर आएगी
दिल कहता तुम होगी ज़रूर
रिमझिम बरसते सावन की तरह
जैसे अमावस के बाद पूनम की रात
पतझड़ के बाद ..बन के, बसंत बहार