बात पते की बोल शिकारी
बात पते की बोल शिकारी
बात पते की बोल शिकारी
तेरी मनीषा कब होगी पूरी ?
चारो तरफ मचा कोहराम
अब किस्से कहलाओगे हे राम ?
थोड़ी सी शर्म करो यार
हर जुल्म की हद होती हैं
इंसानियत की कोई बात करो
हर वक्त न मनमानी करो
माना की तू बेशक ताकदवर हैं
मगर निहत्ते, असहाय पर जुल्म न कर
भूल जा मगरूरी न टूटेगा तेरा घमंड तो
तेरा अंत अटल हैं निश्चित हैं पत्थर की लकीर
इतिहास गवाह हैं बुरे का फल बुरा
झूठे को कला मुंह काला होता हैं
कर कोई काम ऐसा की हमें
तुम पर नाज हो, न शर्मिंदगी महसूस हो।