हर कोई परेशान है मगर
हर कोई परेशान है मगर


हर कोई परेशान है मगर
कुछ लोग कह नहीं सकते
मजबूर हैं बेचारे क्या करेंगे ?
गुलामी की आदत जो पड़ी हैं
सच की लड़ाई में सबकुछ नौछावर
करके फिर भी होटों पर मुस्कान है
अपने ही देश में जिल्लत सह के
देश और मिटटी के प्रति प्यार है
एक वो हैं चंद सिक्कों के कुर्सी के खातिर
कुछ भी करने को हैं तैयार लेकिन
जमीर एक तरफ दूसरी तरफ खाई है
सामने मौत खड़ी हैं फिसलती जुबानी है
जीत आखिर सच की होती है याद रखना
चाहे कितनी भी करे झूटी कोशिश, मक्कारी
नेकी और ईमानदारी से ही मुकाम तक पहुंचना
यही ठीक, खुदा की खिदमत और खुद्दारी है।