ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy

याग्यसेनी

याग्यसेनी

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क्या फर्क पड़ता है क्या नाम है मेरा

हूँ तो आखिर एक औरत ही न?

कोई भी युग हो, कितनी ही नारी सम्मान की बातें हो

सब कुछ खोखला सा है

हाँ सही समझा आपने, मैं हूँ याज्ञसेनी

इतिहास में अलग अलग समय मुझे और भी नाम मिले

द्रौपदी, पांचाली, कृष्णा, नलयानी, सत्यगंधा, और न जाने क्या क्या?

पर जिन मर्दों को एक औरत जन्म देती है

उन मर्दों की फितरत कभी नहीं बदली।

एक अजीब सा विरोधाभास है मानसिकता का

एक औरत करती है राजपाट, दूसरी बन जाती नगर वधु,

और बस संसार यूँ ही चलता रहता है।

गूँजता है एक सवाल मन में कि क्या न्याय मर्दों की बपौती है?

 

पिछले जन्म में नलयानी, अप्रतिम सुंदरी,

नल और दमयंती की कन्या

ब्याह दिया मुझे कुष्ठ रोगी ऋषि मौदगल्य से

बिना मेरी मर्जी जाने, और अगले जन्म में क्या?

पिछले जन्म ऋषि के दिए शाप ने मुझे हिला कर रख दिया

पाँच भाइयों के साथ एक द्रौपदी ब्याह दी गई

और याज्ञसेनी, हाँ द्रौपदी उफ़ भी न कर सकी

जीवन याज्ञसेनी का, प्रारब्ध और किसीने लिख दिया

और पांचाली कुछ न कह सकी।

 

इतिहास में जब भी पुरुष हारता है

बलि चढ़ा दी जाती है कोई नलयानी, याज्ञसेनी, या द्रौपदी

छोड़ो, इन नामों में क्या है?

मेरा अपराध इतना ही है कि मैं औरत हूँ, हाँ मैं याज्ञसेनी हूँ?

और पांडव बिना मेरी रजामंदी मुझे द्युत में हार गये।

मेरी अस्मिता से कौरव नहीं, पांडव खेल रहे थे।

 

पर अब और नहीं, अब याज्ञसेनी यूँ नहीं जीयेगी

नहीं बनना है उसे और किसी की द्रौपदी।

 



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