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गीत

गीत

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फूल गुलाब सरीखी बेटी 

काँटों रह, जग जीत रही है 

वह ही जाने इस दुनिया में 

क्या -क्या उसपर बीत रही है 


अंगारों पर चलती रहती

अधरों पर मुस्कान हमेशा 

सपनों की छोटी सी पुड़िया 

दिल में नभ अरमान हमेशा 

जिस घर आंगन से वह गुजरी 

सबकी प्यारी मीत रही है। ....


कोमल कलियों जैसा तन- मन

तूफानों से नित लड़ती है

विपदाएँ कैसी भी आयें

हिम्मत से आगे बढ़ती है

स्वर्ण किरण सी तिमिर मिटाये 

कब बिटिया भयभीत रही है.... 


तुलसी पूजा, नेह आरती 

बेटी पावन वेद ऋचाएं 

एक नहीं दो कुल मर्यादा

चन्दन वन जैसे महकायें 

मीठे -मीठे बोल बोलती 

कोकिल मधुमय गीत रही है।


पर को लाख कतर दे दुनिया 

ऊँचे अम्बर तक जाती है

उर में व्योम, नयन सागर रख 

वह सबका मन हर्षाती है  

ध्रुव तारे सी नील गगन पर 

जीवन जय यशगीत रही है 



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