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KAVY KUSUM SAHITYA

Abstract

4  

KAVY KUSUM SAHITYA

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बन्दर

बन्दर

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कोइ कहता है बन्दर कोइ मंकी चाहे

जो भी कहलो हम तो है सनकी               

विज्ञान का है कहना है मानव के

आदि हम मुझसे ही विकास मानव का कैसे माने      

वानर तो रह गए जैसे के तैसे नर तो नारायण से आगे नारायण हो गए बौने            

बन्दर कि अपनी भाषा समाज संचार, संवाद कि अपनी शैली


 जब बैठते साथ कभी तो चर्चा करते क्या चीज है मानव   

मंदिर में मेरी पूजा करता मंगलवार का

व्रत रखता हमे आराध्य भी कहता      

राम रावण के युद्ध में हमने सीता का पता लगाया         

महा समुद्र को लाँघ बाँध उसका उसका

अभिमान धुल दुषित कर् उसके हद को बतलाया    


महा युद्ध में पर्वत और चट्टानों को शत्र बनाया           

मेरी कितनी पीड़ी युद्ध के भेट चढ़ गयी बिना

किसी दुःख पीड़ा के राम को विजयी बनाया  

जगह जगह पर मंदिर मेरे ,मेरे नाम प्रसाद

से जाने कितने ही मानव पलते          


 राम चरित मानस हनुमान चालीसा में मेरे ही गुण भजते।

अब देखो सचाई क्या है भटक रहा हूँ इधर उधर        

जंगल ,बन मेरा बसेरा जो अब है गायब मेरे मित्र साथी अब है नदारत              

 मैं सब मानव समाज का हिस्सा बनने कि कोशिश में

गली मोहल्ले चौराहो पर शहर गावँ नगर नगर।


लहु पथ गामिनी विश्रामालय पर हर रोज

सुबह और शाम मानव बनने कि कोशिश करता  

भला हो डार्विन का जिसने हममें है आस जगा रखी         

जो तुम प्रयास करोगे अभ्यास करोगे वही तुम बन पाओगे।


जिसका तुम त्याग करोगे उसको विसराओगे             

वन जंगल का त्याग किया मानव बनने का अभ्यास कर रहा

लेकिन मानव तो मुझसे नफ़रत करता गोली डंडो से मारता

दिन रात दो रोटी की तलाश बन्दर इधर उधर भटक रहा हूँ।


मानव है स्वार्थी अपनी भूख मिटाने को

मुझे नचाता कैद कर् तमाशा बनाता         

बन्दर हूँ मर्यादा पुरुषोत्तम का सेवक हूँ                

मैं तो उनकी मर्यादा को उनकी ख़ुशी के लिये निभाता    


यही अंत नहीं मेरे मानव मानवता के उत्कर्ष में मेरे बलिदान त्याग का                  

जब भी कोई असाध्य आफत में मानव फंस जाता         

मेरी किडनी गुर्दे फड़फड़े से अपनी जान बचाता    

प्रयोग, प्रयोग की शाळा मानव का बन्दर

अपने राजा हनुमान के मानव आशिरबादों के

फलीभूत करने को पैदा होता और मर जात्ता             


कभी वाहन के नोचे दब कर् मर जाता कभी

विद्युत् खंभों के झटके से जल जाता        

कभी लौह पथ गामिनी से काटता मरता मेरे

साथी मेरी मृत्यु पर एक साथ सब मिल बैठ      


मर्यादा पुरुषोत्तम् से करते एक सवाल कहाँ गयी

मर्यादा आपकी मानव को क्यों नहीं बताते

सर्दी गर्मी बारिश की मार झेलते तड़फ तड़फ मर जाते    

मुझमे भी एहसास है मुझमे भी श्री राम है इतना गर

समझ सके हे मानव समझो तब हर बन्दर हनुमान है।


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