मेरा साम्राज्य
मेरा साम्राज्य
मैं कई बार सोचती हूं कि
मैं एक लड़की हूं
बहुत सारे रिश्तों से बंधी हुई
किसी की बेटी हूं तो
किसी की बहिन
किसी की दोस्त हूं तो
किसी की एक सच्ची हमदर्द लेकिन
मेरे हाथ में आखिर में मेरा अपना क्या है
मैं खुद में क्या हूं
मेरे अस्तित्व का रखवाला
कौन है
मेरा दायित्व क्या है
मेरा जीवन में उद्देश्य
क्या है
मेरे साम्राज्य का
विस्तार क्या है
यह संकुचित है या कि है
विकसित
यह किस अवस्था में है
इसका परिधि क्षेत्र क्या है
इसकी भौगोलिक सीमायें क्या हैं
मेरे साथ विपत्ति पड़ने पर
कौन खड़ा है
कौन मुझे सहयोग करेगा
मैं किसके कहां क्या काम आऊंगी
मैं इस दुनिया को क्या
देकर जाऊंगी
यहां से क्या लेकर जाऊंगी
मेरा अधिकार क्षेत्र
कौन सा है
मैं अपने अधिकारों के लिए
कैसे लडूं
किससे लडूं
क्यों लडूं
अपनी समस्यायें किसके
समक्ष रखूं
कौन उन्हें सुनेगा
कौन उन पर विचार करके
मुझे उचित सलाह देगा
मेरा मार्गदर्शन करेगा
यह जीवन की लड़ाई
मैं क्यों लड़ रही हूं
इससे मुझे अंत में
क्या मिलेगा
मेरी जीत होगी या हार
मैं इतनी जो न उलझूं या
इस भंवर से हो जाऊं दूर तो
क्या जीवन की नैया को अपनी
चला पाऊंगी
भीड़ का हिस्सा बनूं या
हो जाऊं उससे अलग
मैं इस धरा की एक
बेटी हूं
जहां मुझसे मेरा सब कुछ
छीना जाता है
मुझे कुछ दिया नहीं जाता
देने के नाम पर सिर्फ
प्रताड़ित किया जाता है
मेरा साम्राज्य कोई नहीं
इन विपरीत परिस्थितियों में
मैं जिंदा कैसे रहूं
मेरा घर मेरा नहीं
मेरा परिवार मेरा नहीं
यह सांसारिक क्रियाकलाप
यह रिश्ते नाते
कुछ भी तो मेरा नहीं
मेरे कोई अधिकार नहीं
मेरा कोई मान सम्मान नहीं
मैं घर के एक कोने में
मुंह पर अंगुली रखकर
चुपचाप बैठी हूं
मैं अपने घर में ही
एक अजनबी हूं
परिवार की कोई सदस्य नहीं
अपनी बात कह पाने में असमर्थ
अपने अधिकारों की लड़ाई
कैसे लडूं
अपने साम्राज्य को कैसे बचाऊं
उसे वापिस कैसे पाऊं
कहीं कोई संभावना नहीं
उम्मीद की बस
एक किरण है कि
मेरे अंदर जो भी कोई
हुनर है
उसे एक फूल सा ही
विकसित करूं और
खिलाऊं
उसकी सुगंध को
चारों दिशाओं में
अपने जीते जी इतना
फैलाऊं कि
वही मेरा साम्राज्य हो
और अपने क्षेत्र में
मेरा योगदान इतना
चरम पर हो कि बस
अपने उसी किले पर मैं
अपनी सफलता का परचम
लहराऊं।