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RAJKUMARI DAYAMENTI DEVI

Abstract

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RAJKUMARI DAYAMENTI DEVI

Abstract

मैं हूँ शब्द

मैं हूँ शब्द

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मैं हूँ शब्द

मैं हर साँस मैं हूँ 

मैं हर जगह मैं हूँ

जब तक मानवता रहेगी

मेरा अस्तित्व कभी नहीं मिटेगी

मानवता से मैं हूँ

मुझे से मानवता है 

मैं हूँ शब्द


मैं शब्द

किसी शायर के मुंह से

निकलती है तो

शायरी बन जाती हैं।


किसी प्रेमिका के दिल से

निकलती है तो

प्यार बन जाता है।

किसी गायिका के मुंह से

निकलती है तो गाना और

ग़ज़ल बन जाती है।

मैं हूँ शब्द।


मैं शब्द

किसी लेखक से निकलती है तो

कविता और कहानी बन जाती है।

किसी चित्रकार से निकलती है तो

कल्पना और चित्र बन जाती है।

किसी के दिल के भावनाओं से

निकलती है तो 

जज़्बात बन जाती है।

मैं हूँ शब्द।


मै शब्द

माँ से निकलती है प्यार तो

ममता बन जाती है।

बच्चे से निकलती है प्यार तो

माँ बन जाती है। 

माँ का बराबर कोई शब्द नहीं है

कहने के लिए जो शब्द

इस्तेमाल किया जाता है

वो शब्द भी मैं ही हूँ।


मैं हर जुबां मै हूँ

मैं हर अल्फ़ाज़ में हूँ

मैं शब्द

मैं शब्द कभी कम नहीं हूँ

न कभी ज्यादा।


मानवता अपने अपने

हिसाब से मुझे इस्तेमाल करते हैं।

क्यूंकि मैं हर किसी की पसंद और

नापसंद की विचार धरा और भावना मैं हूँ।

और अभिव्यक्ति मानव जाति

का एक मात्रा शब्द है।

मैं हूँ शब्द


मैं शब्द

क्यूंकि मानव जाती से ही मेरी पहचान है

किसी को कम शब्द

मिलने से मैं कम नहीं होती

और किसी को ज्यादा शब्द

मिलने से मैं ज्यादा नहीं होती

जिसका जितना सोच हैं

उतना तक मैं हूँ।

मैं हूँ शब्द


मैं हूँ शब्द

मैं हर साँस मैं हूँ 

मैं हर जगह में हूँ

जब तक मानवता रहेगी

मेरा अस्तित्व कभी नहीं मिटेगी

मानवता से मैं हूँ

मुझे से मानवता है 

मैं हूँ शब्द।


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