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Sandeep kumar Tiwari

Abstract

4.3  

Sandeep kumar Tiwari

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दस मुक्तक

दस मुक्तक

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520


हमें भूलने वाले तो मजे से चैन के नींद सोते हैं 

क्या सितम है हम फिर भी प्यार के बीज बोते हैं 

वो जो उनके खातीर हजार सपने देखें थें कभी 

कम्बख्त वहीं आँखे अब खून के आँसू रोते हैं। 


तेरी यादों में याद करता हूँ तेरी यादें 

वहीं भूली वही बिसरी वहीं बिछड़ी यादें 

मैं तेरी याद में कुछ ऐसे डूब जाता हूँ  

भूल जाता हूँ तेरी याद में अपनी यादें। 


एक लम्हे में सिमट जाते हैं कई लम्हें,

मेरी आँखों से कुछ मोती बिखर जाते हैं 

जब भी छाती है संगदिल तेरी यादों कि घटा 

बूंद बनके हम सावन में बरस जाते हैं। 


जिस्म की चाह नहीं दिल पुकारता है तुम्हें 

अब भी आजा ओ संगदिल पुकारता है तुम्हें 

बेवफा तु नहीं,मैं खुद हिं अपना कातिल हूँ 

तुम पे मरने को ये कातिल पुकारता है तुम्हें।


सिर्फ दिल तोड़ देते तो कोई बात नही होती 

ये कहतें हैं कि प्यार में सौगात नही होती 

क्यूँ इश्क को भी मजहबी बना देते हैं लोग 

अब कैसे बतायें आँसुओं की जात नहीं होती।


यार अब ये आदमी मजबूर कितना है 

चार दिन की जिंदगी में दस्तूर कितना है 

इक तेरी याद है जो जिस्म के करीब है 

एक तेरा जिस्म है की दूर कितना है।


जमाने में तुम भी सरेआम हो जाओगे 

मुझे खरीदोगे और नीलाम हो जाओगे 

इश्क इबादत हि है,कोई तहज़ीब नही 

कर के तो देखो, बदनाम हो जाओगे।


बिछड़कर रूह नींदों से बता कैसे वो सोता है 

फूल को प्यार पत्थर से कहीं ऐसा भी होता है 

तुम्हारे अश्क भी साथी न मेरे काम आएँगे 

ये मेरा दर्द अपना है खामखाँ तूं भी रोता है


देख तो लिया बाहर से,मेरे अंदर तो देखा हिं नहीं 

अरे तुमने अभी दर्द के मंज़र को देखा हि नहीं 

दो बूंद आँशुओं को तुम नदी का नाम दे दिये 

यार तुमने इन आंखों में समंदर तो देखा ही नहीं।


अंधों की तरह आँखें चार मत करना 

तपाक़ से तुम यूँही प्यार मत करना 

आजकल अब फूल ही चुभा करते हैं 

किसी मासूम शख़्स पे ऐतबार मत करना।


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