शब्दों की केमिस्ट्री
शब्दों की केमिस्ट्री
शब्द कई रूप में नजर आते हैं
शब्द कैमिस्ट्री की तरह
तीनो अवस्था में पाए जाते हैं
कभी ये भीष्म की प्रतिज्ञा बन
पत्थर की लकीर की तरह
ठोस से हो जाते हैं
तो कभी पवित्र ग्रन्धों की वाणी बन
निरंतर नदी के जल की तरह बहते जाते हैं
तो कभी
कुछ शब्द समय की गर्मी पाकर
गैस बनकर उड़ जाते हैं
शब्द कई रूप में नजर आते हैं
शब्दों का भी अपना एक मौषम होता है
कभी शर्दी में काँपते हुए
कुछ शब्द भावनावों की चादर ओढ़े
शान्ति से,
समाज के नकारात्मक कोहरे को चीरते हुए
चहल कदमी करते रहते हैं
तो कभी किसी ज्वलंत मुद्दे पर
अपनी जिम्मेद्दारी निभाते हुए
आग के गोले की माफिक तपाने लगती है
गलाने लगती है जमी रूढ़ विचारों की बर्फ को
तो कभी शब्द मोहब्बत का जामा पहने
गाने लगते हैं बसंती गीत
तो कभी पेंड के पत्तों के माफिक
झड़ने लगते हैं शब्द
तो कभी पुरानी विचारधारा को त्यागते हुए
परिवर्तन के चक्र पर सवार
नए पत्तों की तरह
उगने लगते हैं शब्द
तो कभी भीगते हुए
शब्दों से टपकने लगती है
मोतियों की लड़ी
और बिखरने लगती है
ख़ुश्बू की रौशनी
शब्द कई रूप में नजर आते हैं
शब्दों की भी एक उम्र होती है
वो भी जीते हैं
उनका भी बचपना होता है
वो भी जवानी की दहलीज
पर कदम रखते हैं
वो भी उर्जावान होते हैं
और कई अनुभवों को लिए
बुजुर्ग होते रहते हैं
शब्द भी कभी अटल होकर
जड़ होजाते हैं तो कभी
वक़्त की करवट में
खुद को बदलते हुए
चेतन के हुनर को अपनाते हैं
शब्द भी
सत्य असत्य के नजरिये के
तराजू पर तौले जाते हैं
समाज को बनाते हैं सवारतें है
हर रोज एक नया इन्द्रधनुष बनाते हैं
शब्द भी कई रूप में नजर आते हैं
हाँ, शब्द भी कई रूप में नजर आते हैं।