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saima khan

Abstract Inspirational

3.0  

saima khan

Abstract Inspirational

आओ बाँटें कुछ पल खुशी के

आओ बाँटें कुछ पल खुशी के

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क्या कभी भूख से रोते हुए बच्चे को हँसाया तुमने;

या कभी किसी बेसहारा के आँसुओं की

वजह का पता लगाया तुमने ?


क्या कभी किसी अंधेरे घर में

रोशनी का एक छोटा दीपक बने हो तुम;

या पूछा किसी बीमार से

"ओ काका अब कैसे हो तुम ?


क्या पूछा तुमने उस झोपड़ी में बैठी

एक माँ और उसके चार बच्चों से;

कुछ खाया तुमने या आज फिर सो जाओगे भूखे ?


क्या पूछा तुमने कभी उस औरत से

जो लिए बैठी है चेहरे पर डर;

कुछ पैसों की वजह से

कहीं अस्पताल की दहलीज पर

दम न तोड़ दे उसका शौहर !


पढने की उम्र में जो दिन-रात मजदूरी करता है;

क्या कभी ऐसे बच्चे को सीने से लगाया तुमने ?


क्या अपनी भाग दौड़ की जिन्दगी से

दो मिनट निकालकर;

ट्रेफिक से गुजर रहे एक नबीना को

रास्ता पार कराया तुमने ?


क्या कभी सड़क के किनारे बैठी

एक बूढी अम्मा से जामुन खरीद कर;

उसके परेशान चेहरे पर मुस्कुराहट को सजाया तुमने ?


क्या अपने माँ-बाप के साथ

कुछ वक्त कीमती बिताया तुमने;

या फिर सालों पहले रूठे हुए एक दोस्त को

फोन पर साॅरी बोलकर मनाया तुमने ?


क्या कभी ईद, क्रिस्मस और दिवाली पर;

अपने गरीब पड़ोसी का दरवाजा खटखटाया तुमने ?


निकालकर दिलों से हिन्दु- मुसलमां की नफरत को;

क्या कभी मोहब्बत का परचम लहराया तुमने ?


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