भारत और मजहब
भारत और मजहब


मैं भारत हूँ
शौर्य की इमारत हूँ,
वीरों के पराक्रम से
सदियों से हिफाज़त हूँ।
मौर्य शासनकाल में
मेरा भव्य विस्तार हुआ,
अकबर के प्रशासन में
धर्म भेद निस्तार हुआ।
अंग्रेज़ों के ज़माने में
मेरा शोषण बार-बार हुआ,
गाँधी, भगत के काल में
मेरा फिर उद्धार हुआ।
कोई भारत कहता है
कोई हिन्द कहता है,
भिन्न-भिन्न हैं नाम मेरे
कोई इंडिया कहता है।
रँगी हूँ मैं रंगों से
कई रंग की माटी से,
लाल पीली और काली
और गहरीली घाटी से।
देते मुझमें अनेक धर्म दिखाई
हिन्दू मुस्लिम सिख और ईसाई,
भाषाओं का सागर मुझमें
आशाओं की गागर मुझमें।
किन्तु दिल फट सा जाता है
कलेजा मुँह को आता है,
देख के आँधी नफरत की
दिल छलनी हो जाता है।
क्यों मज़हब-मज़हब करते हो
उस रब से भी ना डरते हो,
बना बना के धर्म अनेक
आपस में कट मरते हो।
बाँटे तुमने भगवान
और बाँटा हर इंसान को,
क्या बाँट पाए ये धरती
और बाँट पाए इस जहान को ?
कोई पूजा करता है
कोई नमाज़ पढ़ता है,
कोई ईश्वर कोई अल्लाह
कोई यीशु कहता है।
बाँटे तुमने रंग
और बाँटा हर त्यौहार को,
क्या बाँट पाए ये सागर
और बाँट पाए उस आसमान को ?
इस हिन्दू मुस्लिम लड़ाई में
गहराती जाती इस खाई में,
इस जन्म को तुम व्यर्थ ना करना
ये जीवन तुम निरर्थ ना करना।
इस कट्टरता के विपरीत
एकता की तुम ढाल बनो,
हो कद छोटा कितना भी
सोच से तुम विशाल बनो।
पूर्वजों का गुरूर
और भविष्य के तुम मिसाल बनो,
भारत के तुम वीर
और हिन्दुस्तान के लाल बनो।