बसंत ऋतु आई।
बसंत ऋतु आई।
आई बसंत की बयार।
मन मयूर झूमे बार-बार।
शरद थी ऋतु हम कहीं सिकुड़े पड़े थे।
ठंड के आगोश में सब जकड़े पड़े थे।
तभी बसंत की जो बयार थी बही।
फूलों की मनभावन सुगंध से खिंचे हम चले थे।
राह में चारों तरफ फूल ही फूल खिले थे।
रंग बिरंगे फूलों में मन उलझा हुआ था।
पेड़ों को फूलों की बेलों
ने रंगों से सजाया हुआ था।
भंवरों और तितलियों ने डेरा जमाया हुआ था।
मधुर संगीत चहुं और बज रहे थे।
वहीं मन में खुशियों के फूल खिल रहे थे।
प्रेमी मन एक दूसरे से मिलने को मचल रहे थे।
प्रेम का मौसम तो आया हुआ था।
गालों की लाली बढ़ाया हुआ था।
चाहे कुछ भी हो इज़हार कर देंगे इस बसंत में हम भी प्रेम का ।
मुस्कुराहटे बढ़ रही थी चेहरे हमारे भी खिले हुए थे।
प्रकृति ने हमारी भी प्रकृति को बदला।
सूना था मन अब लग रहा था खिला-खिला।
प्रेम रस से सराबोर था ।
हमारे ही मन पर हमारा ना जोर था।
बसंत पंचमी पर ही सजनी ने साजन का होना था।
गालों का सिंदूरी रंग मांग में सजना था।
दूर कहीं प्रेम राग बज रहे थे।
गोरी की पायल के घुंघरू भी छम छम बज रहे थे।
आई थी बसंती बयार मन मयूर झूम रहा था बार-बार।

