मैं और तुम
मैं और तुम
मैं और तुम
हर बार हम बनने को मिलते हैं
हमारे अहम से टकरा कर
हम चकनाचूर हो जाता है
और इसके अणु पूरे ब्रह्मांड में बिखर जाते हैं
एक लम्बे समयांतराल के बाद
फिर से एक जगह जुड़ने लिए
मैं और तुम मिलते हैं
मगर एक-दूसरे को मिटाने लिए
और ये सही भी है
क्योंकि जब तक मैं और तुम ख़त्म नहीं हो जायेंगे
हम आकार नहीं ले सकेगा
मैं और तुम बात नहीं करते एक-दूसरे से
मगर हम बात करना चाहते हैं
मैं तुमसे बात इसलिए नहीं करता कि
मैं जानता हूँ मेरी आवाज़ नहीं पहुँच पाएगी तुम तक
तुम मुझसे बात इसलिए नहीं करती कि
तुम चाहती हो कि मैं झुकूँ तुम्हारी ज़िद के आगे
मैं और तुम एक दूसरे से प्यार नहीं करते
बल्कि नफ़रत करते हैं इतना
जितना और कोई नहीं करता
ना मुझसे ना तुमसे
पर फिर भी हम मिलते हैं
ताकि एक-दूसरे को जला कर राख कर सकें
पर अफ़सोस की ऐसा हो नहीं पाता पूरी तरह
मैं और तुम फिर से बिखर जाते हैं टुकड़ों में
इसलिए हम नहीं बन पाते।