अनकहा
अनकहा
अनकहा
सच कहूं तो तुम्हें,
भूली आज भी नहीं
पर हाँ....
चाहती हूँ तुम्हें भूल जाना,
तुम्हारे मेरे बीच,
कुछ ऐसा-वैसा नहीं था,
पर हर बार तुमसे मिलने पर,
धड़कन को कुछ कहना..
आँखों को कुछ पाना था,
पर हर बार कुछ अनकहा,
रह जाता बीच हमारे,
जरूरी तो नहीं,
हमारी हर पसन्द,
हमें मिल ही जाये....
तुम्हें भूलने की कोशिश,
जारी है अब तक,
अब, जब मैं खुश हूँ,
अपने परिवार में,
तुम एकाएक चले आये,
तुम्हारी नजरों की बेचैनी,
सवाल करती है....
पर इस बार भी तुम,
कुछ अनकहे शब्दों को,
लेकर बहुत दूर चले जाओ,
और हो सके तो,
मुझे भूल जाना सदा के लिए...
एक भ्रम के साथ,
मैं भी आगे बढ़ रही हूँ
कि मैं तुम्हें भूल गई...।।