छोड़ दी मैंने
छोड़ दी मैंने
ज़माने में, ख्वाबों का, अजी, अंजाम वो देखा कि,
हर चाहत छोड़ दी मैंने, हर हसरत छोड़ दी मैंने।
ज़माने की, हकीकत का, अजी, आईना वो देखा की,
निगाहें मूँद ली मैंने, अपनी उम्मीदें तोड़ दी मैंने।
हर चाहत छोड़ दी मैंने, हर हसरत छोड़ दी मैंने
उठा कर हाँथ, था माँगा, बना कर, भेष फकीरों से,
मिली न, वो भी, जो थी लिखी, हाँथों की लकीरों में,
ज़माने में फकीरों का, हुज़ूर हाल वो देखा कि,
इबादत छोड़ दी मैंने, अजी अकीदत छोड़ दी मैंने।
हर चाहत छोड़ दी मैंने, हर हसरत छोड़ दी मैंने
मैं पागल था, जो ढूँढा, किया खुद को, हज़ारों में,
न कोई था, न कोई है, यहाँ मुझसा, बाज़ारों में,
पंकज का, बाज़ारों में, अज़ी, दाम वो देखा कि,
तिजारत छोड़ दी मैंने, अपनी फितरत छोड़ दी मैंने।
हर चाहत छोड़ दी मैंने, हर हसरत छोड़ दी मैंने
मैं खुशबू हूँ, मैं ख्वाहिश हूँ, मेरा दिल भी, धड़कता है,
मेरे शेरों में, मेरे शब्दों में, मेरा अक्स ही, झलकता है,
पंकज की खुशबू का, ज़माने में हष्र वो देखा कि,
अपनी कैफियत छोड़ दी मैन, खासियत छोड़ दी मैंने।
हर चाहत छोड़ दी मैंने, हर हसरत छोड़ दी मैंने