पिता की कहानी बेटी की जुबानी
पिता की कहानी बेटी की जुबानी
छोटे शहर को छोड़,
मैं बड़े शहर आ गई,
मैं सपनों को बुनने,
सपनों के शहर आ गई।
मुश्किल है अकेले,
पूरे दिन को बिताना,
और मुश्किल है,
घर के फोन पर आंसुओं को छुपाना !
मेरी घर पर रोज बात हो जाया करती है,
मां फोन पर घंटों बिताया करती है,
एक आवाज़ बीच में अक्सर सुनाती है,
color: rgb(255, 255, 255);">मैं और सुनना चाहती हूं,
बात पलट, माँ कुछ और सुनाती है।
शायद दूर खड़े सब सुन रहे होते हैं,
पापा हे मेरे अनगिनत प्यार लिए होते हैं।
कभी-कभी मेरी उनसे बात हो जाया करती है,
बहुत थोड़ी सी ही लेकिन दिल को छू जाया करती है !
वे लाख बातें कहना चाहते थे,
शायद,सब सिखाना चाहते थे।
धीरे-धीरे उनकी आवाज दबने लगी,
शायद आंसुओं में बह गया,
जो प्यार जताना चाहते थे।