STORYMIRROR

ramsingh rajput

Abstract Drama

4  

ramsingh rajput

Abstract Drama

पिता की कहानी बेटी की जुबानी

पिता की कहानी बेटी की जुबानी

1 min
378

छोटे शहर को छोड़, 

मैं बड़े शहर आ गई, 

मैं सपनों को बुनने, 

सपनों के शहर आ गई। 


मुश्किल है अकेले, 

पूरे दिन को बिताना, 

और मुश्किल है, 

घर के फोन पर आंसुओं को छुपाना ! 


मेरी घर पर रोज बात हो जाया करती है, 

मां फोन पर घंटों बिताया करती है, 

एक आवाज़ बीच में अक्सर सुनाती है, 

मैं और सुनना चाहती हूं, 

बात पलट, माँ कुछ और सुनाती है। 


शायद दूर खड़े सब सुन रहे होते हैं, 

पापा हे मेरे अनगिनत प्यार लिए होते हैं। 

कभी-कभी मेरी उनसे बात हो जाया करती है, 

बहुत थोड़ी सी ही लेकिन दिल को छू जाया करती है ! 


वे लाख बातें कहना चाहते थे, 

शायद,सब सिखाना चाहते थे। 

धीरे-धीरे उनकी आवाज दबने लगी, 

शायद आंसुओं में बह गया, 

जो प्यार जताना चाहते थे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract