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ramsingh rajput

Abstract

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ramsingh rajput

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शिकायत

शिकायत

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अब जो बिछड़े हैं, तो बिछड़ने की शिकायत कैसी ।

मौत के दरिया में उतरे तो जीने की इजाजत कैसी ।।


जलाए हैं खुद ने दीप जो राह में तूफानों के

तो मांगे फिर हवाओं से बचने की रियायत कैसी ।।


फैसले रहे फासलों के हम दोनों के गर

तो इन्तकाम कैसा और दरमियां सियासत कैसी ।।


ना उतावले हो सुर्ख पत्ते टूटने को साख से

तो क्या तूफान, फिर आंधियो की हिमाकत कैसी ।।


वीरां हुई कहानी जो सपनों की तेरी मेरी

उजडी पड़ी है अब तलक जर्जर इमारत जैसी ।।


अब जो बिछडे हैं, तो बिछडने की शिकायत कैसी ।

मौत के दरिया में उतरे तो जीने की इजाजत कैसी ।।


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