छोर
छोर
थके कदमों से ज़िंदगी ढो रहे हो
ज़िंदा हो या मज़ाक कर रहे हो।
सिर्फ वजूद की ख़ातिर अनगिनत सांँसें
जिस्म है गोया कोई खोली जिसमे रह रहे हो।
बस उनकी एक मुस्कुराहट के खातिर
खुद के वजूद पर कितना जुर्म कर रहे हो।
बहुत मुश्किल होता होगा दीयों को आँधियों में
तुम तो पूरा तूफान अपने जिस्म में लिये फिर रहे हो।
कलम दवात की, स्याही से ज्यादा कहाँ चलती है
हदें तय हैं, दो छोरों की दूरी तय कर रहे हो।