एक रिश्ता सच्चा सा
एक रिश्ता सच्चा सा
एक रिश्ता बनाने के लिए फासलों का कम होना ज़रुरी तो नहीं,
बरसों की जान-पहचान और गुफ़्तगू हो,यें ज़रूरी तो नहीं.
चंद मुलाक़ातें ही काफी होती हैं कभी-कभी एक सम्बन्ध बनाने को,
दिल से दिल और आत्मा से आत्मा का मिलन कराने को.
खुशनसीब होते हैँ वे आकस्मिक ही मिल जाता है सानिंध्य ऐसे किसी व्यक्ति का जिन्हें,
एक मुलाक़ात में ही दिल हार बैठते हैँ उस व्यक्ति विशेष पे वे.
जैसे सीपी में मोती, चन्दा में चांदनी,दीपक में ज्योति,फूलों में रागिनी होती है,
उतनी ही सुदृढ़ और अटूट जोड़ी ऐसे किसी के जीवन में आगमन से बन जाती है.
जन्मों का नाता बनाने के लिए जन्म-जन्मान्तर साथ बिताने की ज़रूरत ही क्या है,
जब एक पल ही काफी है एक दूजे का बन जाने को,तो सालों के साथ की चाह करने की ज़रूरत ही क्या है.
पिछले जन्म का कोई रिश्ता तो ज़रूर होता होगा ऐसे किसी ख़ास से,
यूँ ही नहीं आखों के रस्ते उतर कर दिल की हर धड़कन की धड़कन बन जाता है.
ज़िंदा भले ही हों पर ज़िन्दगी का कोई मायना उसके बगैर नज़र ही नहीं आता,
एक रिश्ता बन जाएं अगर ऐसे किसी ख़ास से तो मीलों का फासला भी दिलों में दूरी बनाने में नाकाम रह जाता....

