सारी रात तुम अपनी चाहतों का रँग लगाना ,
ऐसा ख्वाब अगर हो सके तो सच कर जाना |
आकर उस ख्वाब में मुझे हौले से छेड़ जाना ,
मैं कितना भी मना करूँ तुम ना घबराना |
तमन्नाओं को बेशर्म कर जब सामने लाना ,
तब अपने प्यार का जोर से बिगुल बजाना |
मैं नादानी में अगर रो पढूँ तो मुझे मनाना ,
जैसे भी मुमकिन हो मुझे सब समझाना |
मेरा चाहतों के रास्ते पे हाथ छोड़ ना जाना ,
इन अधूरे ख्वाबों को हकीकत में लाना |
फिर जोश और होश दोनो का समन्वय बैठाना ,
और अपने सब अरमान हौले - हौले पिघलाना |
चरमसीमा पर पहुँच कुछ देर ठहर जाना ,
इतने सालों की चाहत को व्यर्थ यूँ ना बहाना |
चाहतें कितना भी बस करती जायें ,
तुम बस उस प्यार की बारिश में नहाते जाना |
सारी रात तुम अपनी चाहतों का रँग लगाना ,
ऐसा ख्वाब अगर हो सके तो सच कर जाना ||