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Meena Mallavarapu

Romance

4  

Meena Mallavarapu

Romance

प्रतिज्ञा..

प्रतिज्ञा..

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400


रजनी के आंचल में सिर रख

सिसक सिसक कर रोई मैं

तारों के परिहास की गूंज

सुनते-सुनते सोई मैं

फूल दिया तुमने किस आडम्बर से

मैंने पढ़ी हर प॓खुड़ी में

एक प्रणय कहानी

यह कब जाना मैंने 

फूल तुम्हारे लिए था केवल फूल

समझ बैठी मै उसी को एक प्रतिज्ञा

मुस्कान तुम्हारी थी केवल एक मुस्कान

मैंने जाना उसे प्रेम का वरदान

अपार उमंग ने मन में किया पदार्पण

 यह कब जाना मैंने

 उस मुस्कान पर है सबका अधिकार

 समझ बैठी मैं उसी को एक प्रतिज्ञा

 दोष तुम्हे अब क्या देना

 थी नादानी यह मेरी

 पढ़ बैठी जो तुम्हारी चंचलता में

  एक प्रतिज्ञा ।



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